भारतीय नववर्ष
बदलेगा नव वर्ष नया संवत आयेगा,
कुदरत में भी रंग नया दिख जायेगा।
चहकें चिड़िया और परिन्दे नीलगगन,
कली- कली पर भौरा रास रचायेगा।
झूमेगी सरसों खेतों में धानी चूनर ओढ़े,
अंकुरित नव पात, पीत पत्र झर जायेगा।
कोयल कुकेगी बागों में, आम वृक्ष बैठी,
शीतल मन्द पवन का झौंका मन हर्षायेगा।
भारतीय नववर्ष विक्रम संवत से प्रारम्भ होता है। जो कि वर्तमान वर्ष से 57 वर्ष पूर्व से गिना जाता है| इस समय 2023+ 57= 2080 चल रहा है। नये संवत का आगाज चैत्र मास यानि लगभग मार्च मे होता है।जब मौसम बदलता है, नयी फसले आती हैं। सर्दी का अन्त होता है। कन्या पूजन नवरात्रो का आयोजन किया जाता है। जब भू गगन वायु अग्नि नीर यानि सम्पूर्ण प्रकृति उत्साह से भर नाच उठती है। वृक्षो से पीत पत्र झर जाते हैं, नयी कोपले फूटती हैं, तब होता है नव वर्ष।
आप सबकी ख़ुशी मे शामिल हों अच्छा है मगर क्या कभी अपना नववर्ष मनाया? वह नववर्ष जिसका आधार वैज्ञानिक है, प्रकृति से जुडा है। इस बार भारतीय नववर्ष भी इतने ही उत्साह से मनाये। पूजा पाठ, धर्म कर्म और हवन करें। हमारे नववर्ष पर शराब और मांस का प्रयोग नही होता है। निर्दोषों बेजुबानो को स्वाद के लिये मारा नही जाता है। हमारा नववर्ष मानवता को समर्पित है। दीन दुखी की सेवा करना ही मानवता है, यही सनातन है, यही हिन्दू धर्म है। मगर यह तो अपना नववर्ष नहीं है –
न परिंदों में कोई आहट, न फसलों की कहीं आमद,
न मौसम में ही कुछ बदला, ये कैसा साल है बदला?
न इन्सानी बढे रिश्ते, न मानवता कहीं तडफी,
नही इन्सां कहीं बदला, ये कैसा साल है बदला?
न सूरज में बढी गर्मी, न सर्दी में कहीं नरमी,
न कोहरे ने ही रंग बदला, ये कैसा साल है बदला?
न पेडों से झडे पत्ते, बसन्त अब तक नही आया,
न फसलों का ही रंग बदला, ये कैसा साल है बदला?
दिन भी वही, तारीख वही, महीने भी वही रहते,
समय भी तो नही बदला, ये कैसा साल है बदला?
— डॉ अ कीर्तिवर्धन