नया साल
कुछ दिन रह गए
बेसब्री से इंतजार नए साल का
शायद कुछ नया लाये
हर कोई कर रहा इंतज़ार
रात भर जश्न मनाएंगे
नए नए ख्वाबों में डूब जाएंगे
उतरेगी खुमारी
सुबह फिर वही पुरानी दुनियां में खो जायेंगे
गरीब के लिए तो
नया साल भी पुराना सा है
सुबह कमायेगा
तो कही शाम चूला उसका जलेगा
कुछ उनमें होंगे
जो रात को कूड़े में फ़ेंकी
रोटी टटोल रहे होंगे
झूठे फेंके निबालों से
अपना नया साल मना रहे होंगे