बोधकथा

नेताजी की एकाग्रता

नेताजी ने आईसीएस की परीक्षा पास करने के बावजूद अंग्रेजी हुकूमत के तहत काम न करने का निर्णय लिया था और देश को आजाद करने के लिए स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे। देशभक्ति और त्याग की मूर्ति  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का विद्यार्थी जीवन भी कम रोचक नहीं है।

 इनका जन्म एक संपन्न बंगाली परिवार में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। वे पढ़ने में बहुत तेज थे। वे सभी विषयों में  तो बहुत तेज थे लेकिन अपनी मातृभाषा बांग्ला में उनकी पकड़ कम थी। एक दिन शिक्षक ने बांग्ला में एक निबंध  लिखने के लिए दिया। सुभाष बोस के निबंध में अनेक खामियाँ थी।  सहपाठियों ने उनका मजाक  उड़ाया। एक विद्यार्थी सुभाष से बोला,”वैसे तो तुम बड़े देशभक्त बनते हो पर अपनी ही मातृभाषा में तुम्हारी पकड़ कमजोर है।” सुभाष को यह बात चुभ गई। अब उन्होंने बांग्ला भाषा के व्याकरण का अध्ययन करना आरंभ कर दिया। उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि अब वह बांग्ला भाषा में केवल  पास होने लायक अंक ही नहीं लायेंगे बल्कि उसमें अव्वल  होने का भी प्रयास करेंगे। उन्होंने बांग्ला भाषा को सीखने के लिए लगातार मेहनत करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद सुभाष ने बांग्ला में महारत हासिल कर ली।

वार्षिक परीक्षा सामने थी।अधिकतर सहपाठियों का मानना था कि बांग्ला विषय में कमजोर होने के कारण सुभाष प्रथम स्थान प्राप्त नहीं कर पाएगा। परीक्षा का परिणाम निकलने पर सभी हतप्रभ रह गए।  सुभाष बांग्ला विषय में भी सर्वोच्च अंक लाकर  परीक्षा में प्रथम रहे। शिक्षकों ने सुभाष की लगन और मेहनत की भूरि – भूरि प्रशंसा की। सुभाष ने  छात्रों से कहा,”यदि लगन और एकाग्रता हो तो इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है।”

— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]