मानवता का गान
मानवता को जब मानोगे,तब जीने का मान है।
जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।
भेदभाव में क्या रक्खा है,ये बेमानी बातें हैं।
मानव-मानव एक बराबर,ऊँचनीच सब घातें हैं।।
नित बराबरी को अपनाना,यह प्रभु का जयगान है।
जात-पात का भेद नहीं हो,मिलता तब यशगान है।।
दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,जो देता है सम्बल।
पेट है भूखा,तो दे रोटी,दे सर्दी में कम्बल।।
अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।
जात-पात का भेद नहीं हो,मिलता तब यशगान है।।
धन-दौलत मत करो इकट्ठा,नहीं खुशी पाओगे।
जब आएगा तुम्हें बुलावा,तुम पछताओगे।।
हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,पा लेनी पहचान है।
जात-पात का भेद नहीं हो,मिलता तब यशगान है।।
शानोशौकत नहीं काम की,चमक-दमक में क्या रक्खा।
वही जानता सेवा का फल,जिसने है इसको चक्खा।।
देव नहीं,मानव कहलाऊँ,यही आज अरमान है।
जात-पात का भेद नहीं हो,मिलता तब यशगान है।।
जीवन का तो अर्थ प्यार है,अपनेपन का गहना है।
वह ही तो नित शोभित होता,जिसने इसको पहना है।।
जो जीवन को नहिं पहचाना,वह मानव अनजान है।
जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे