तैयारी एक यात्रा की (व्यंग्य)
इसी पृष्ठभूमि पर शुरू हो रही है फिर से राजनीतिक यात्राओं का दौर। विशाल रैली और महा रैली भी निकाली जा रही है इसके पीछे भी यही मंशा रहती है की, हम कर्म करेंगे तो हमें जन समर्थन मिलेगा हमारी शानदार राजनीतिक पारी की शुरुआत होगी ।हमारा संगठन मजबूत होगा।
भारत तो अटूट है, अखंड है और वैश्विक रूप से खूब मजबूत है लेकिन फिर भी भारत को मजबूत करने के लिए ‘ कभी न्याय यात्रा निकाली जाती है तो कभी भारत जोड़ो ‘यात्रा निकाली जाती है ।महारैली भी निकाली जाती, है ऐसी महारैली का एवं हर राजनीतिक यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है। वे रैली निकालकर एवं यात्रा के अगुवा बनकर इतिहास में दर्ज होना चाहते हैं ।टूट कर बिखरते सपनों को साकार करना चाहते हैं। ऐसे जांबाज एवं हिम्मत न हारने वालों की दाद देनी चाहिए जो बार-बार परास्त होने के बाद भी सफलता की लगातार कोशिश करते हैं। नई प्राणवायु फूंकने के इस प्रकार के प्रयासों का दौर फिर से प्रारंभ होने वाला है। उनकी यात्रा गांव से भी गुजरेगी, शहरों में भी वे लोगों से गले मिलेंगे गरीबों को भी गले लगाएंगे, उनके सुख-दुख को साझा करेंगे। यात्रा में शामिल होने वाले लोगों को सशक्त और मजबूत बनाया जाएगा तमाम सरकारी योजनाओं को उनके झोली में डाला जाएगा। इसी यात्रा के बहाने वे अपनी ताकत देश को दिखाना चाहते हैं और इसी ताकत के साथ वे राज सिंहासन में काबिज होने के लिए कदम भी बढाना चाहते हैं।
हर यात्रा का एक अगुवा होता है ,जिसकी यात्रा में खूब पूछ परख होती है ।जिसका आदेश लोग सर आंखों पर रखते हैं। उनमें बहुत खूबी भी होती है वे कुली बनकर चके वाली अटैची को सर में रखकर रख सकते हैं ।कभी मोची से लेकर फटे जूते चप्पल सिलने की कला सीख सकते हैं। मोटर मैकेनिक बन सकते हैं ।खेत में उतरकर धान काट सकते हैं ,और तो और पहलवानों से हाथ मिलाकर कुश्ती के दांव पेज भी आजमा सकते हैं। वे हर कला में माहिर होना चाहते हैं। ताकि यात्रा में हर वर्गों का लाभ मिल सके ।उनकी यात्रा न्याय के लिए है यानी अन्याय के खिलाफ है जिनको न्याय नहीं मिला है ,वे यात्रा के सहभागी यात्री बन सकते हैं। कई किलोमीटर की यात्रा करेंगे। जब यात्रा के अगुआ बने मुखिया ने हजारों किलोमीटर की यात्रा की घोषणा की तब उनकी पार्टी में शामिल सबके चेहरे चमक उठे ।उदासी भरे चेहरों में चमक आने लगी।
सब ने सुझाव दिया यात्रा को पूर्व से पश्चिम की ओर निकालना चाहिए । सर्व सम्मति से यही बात फायनल हो गई। यात्रा के नेतृत्व के लिए तैयार एक प्रमुख नौजवान से हमने पूछ ही लिया- आदरणीय यह यात्रा किस मकसद से निकली जा रही है? आपके मन में ऐसा क्या विचार कौंधा कि आप यात्रा पर निकल रहे हैं?
पहले तो उन्होंने गौर से हमें देखा जब तसल्ली हो गई कि हम मीडिया से हैं तो उन्होंने कहना शुरू किया- देखो भैया, हमारी यात्रा का ये जो दर्शन है बापू से प्रेरित है। हमारी यात्रा न्याय एवं सत्य के राह पर चलेगी ।हम महात्मा गांधी के आदर्श और सिद्धांतों की ऐतिहासिक सच्चाई के साथ चलेंगे। इस यात्रा के द्वारा हम राष्ट्रीय चेतना जागृत करना चाहते हैं। गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत को अपनी यात्रा से ही परास्त कर दिया था ।
हम भी कुछ ऐसा ही करना चाहते हैं। उन्होंने कहा- गांधी जी ने तो दांडी यात्रा ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ने के लिए प्रारंभ किया था, हम राजनीति में एकाधिकार एवं वर्चस्व के वातावरण को तोड़ने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं। हमारे साथ तो पूरे देश का आशीर्वाद है। हमारी यात्रा में दम है तभी तो विरोधी हमारी यात्रा से भयभीत होने लगे हैं इतना कह कर वे अपनी यात्रा के निर्धारित मार्गो के नक्शे बनाने में व्यस्त हो गए।
यात्रा के अगुवा के अगल-बगल के लोग मीडिया के दखल पर ज्यादा सक्रिय हो उठे और जिंदाबाद- जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। नारों की आवाज ज्यादा बुलंद थी, मेरी आवाज कमजोर ।सो वहां से मैं चुपचाप लौट आया और, उस दिन के प्रतीक्षा करने लगा जिस दिन उनकी यात्रा का शुभारंभ होने वाला है।
गीता में कर्म की बेहतर व्याख्या की गई है। यही कर्म का सिद्धांत , इन दोनों सर चढ़कर बोल रहा है और निस्संदेह राजनीतिक यात्राओं में भी लागू होता है ।फल मिले न मिले बस ,अपना कर्म करते जाओ। सच भी है कि कर्म किए बिना फल कहां मिलता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को यही समझाया है कि- बस अपना कर्म करो,अर्जुन कर्म के अनुसार फल मिलना तय है ,फल की चिंता मत करो।
— सतीश उपाध्याय