धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

साधु – सन्त कौन ?

विपदाएं, परेशानियां, कठिनाइयां आदि आती रहती हैं उनका सामना  करते करते मानव दुखी हो जाता है। सकारात्मक उर्जा  नहीं मिलने के कारण व्यक्ति थक जाता है। ऐसे में आध्यात्म ज्ञान हमें वो मानसिकता संतुष्टि एवं शक्ति प्रदान करता है | जिससे सबसे पहले हमारा मन हमारे काबू में हो जाता है इसका नतीजा यह होता है कि हमारी इच्छाएं सीमित हो जाती है | जैसे-जैसे हम आध्यात्मिक ज्ञान को समझते जाते हैं वैसे वैसे मन में सकारात्मक विचारों का और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होना प्रारंभ हो जाता है | इससे  हमारी इच्छाएं अपने आप ही सीमित रह जाती है क्योंकि जिंदगी में आधे मुसीबतों की जड़ हमारी बेवजह की इच्छाएं ही होती हैं | अध्यात्म में वो शक्ति है जो हारे हुए जीवन को जीत में बदल देता है | अध्यात्म के बहुत सारे अंग हैं योग प्राणायाम, ध्यान आदि के माध्यम से व्यक्ति अपने आपको भीतर से मजबूत बना सकता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्म के सार को समझ लेता है वह जीवन में किसी भी स्थिति -परिस्थिति में सुखी और प्रसन्न रहता है। जो संसार में चिन्तारहित हैं । जो मानव अनासक्त है । जो जीता है बाहर पर रहता है भीतर वह साधु है । यह अध्यात्म का सार हैं । संसार में सबसे सुखी कौन ? सभी जन उत्तर सुन हैरान थे ।धनवान आदि भी  दंग रह गये थे । जब भगवान बोलें-सुखी वह है है जिसमें टेंशन नहीं हैं ।सबने पूछा इसका कारण तो कारण का ये निवारण करते हुए भगवान ने फरमाया की जो अपनी इच्छा का सीमाकरण करे ।वह संतोष धन कमाते हैं।सुखी मन से  अपना शान्त जीवन जीते हैं । अहिंसा परमोधर्म : जीवानाम् परस्परोपगर्हो । ये ही धर्म का मर्म हैं ।सबका समझे दर्द ।सभी आत्मतुल्य हैं । सबका जीवन अमूल्य हैं ।अनावश्यक इच्छा का अन्त करना हैं । उसका रिजल्ट हमारे सामने संसार में होते हुए भी संसार से विरक्त साधु – सन्त  है  । मैत्री का संदेश , न हो ईर्ष्या, न प्रतिस्पर्धा, सबमें बसे सन्त , सबको मिलें समान चादर ।सब दिखें राही प्रसन्न । फिर सें संतोष और शान्ति का कल्पवृक्ष यौगलिक जीवन का समय जिसकी छत्रछाया में पलें बढ़े अध्यात्म । साधु – सन्त  वे होते हैं जिन्होंने पाँच महाव्रत रूपी अमूल्य हीरों को प्राप्त कर लिया हैं ।यह ऐसे अदभुत हीरे है जिन्हें किसी भी कीमत में नहीं खरीदा जा सकता है ।इस संसार की नश्वरता को समझ कर संयम साधना में संलग्न हो साधु जीवन से कर्मों की निर्जरा करते हुए 15 भव के अन्दर – अन्दर मोक्ष के मार्ग को जो प्रशस्त कर रहे है वे ही साधु होते है ।
— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

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