कविता

नववर्ष : स्वागत और विदाई

आइए हंसी खुशीविदा हो रहे दो हजार तेईस सेन ईर्ष्या द्वेष नफरत करेंन कोई शिकवा शिकायत करें,जो बीत गया उसे लौटा नहीं सकतेऔर न ही बीते दिनों में लौटकरकुछ भी अच्छा या खराब कर ही सकते हैं।फिर जाते हुए मेहमान सेदुःखी होकर भी क्या पा सकते हैं?बीती बातों को बिसार दोजितने उत्साह से नववर्ष के स्वागत मेंपलक पाँवड़े बिछा रहे होउतने ही उत्साह से जाते हुए वर्ष को विदा भी करो।आखिर तीन सौ पैंसठ दिन उसनें भी तोजैसे भी हो साथ निभाया तो हैवादा इतने ही दिन साथ निभाने का थाजिसे ईमानदारी से निभाया भी है,अब जा रहा हो, फिर लौटकर नहीं आयेगाहमारी स्मृतियों से निकल भी नहीं पायेगापर हमसे हमेशा के लिए दूर हो जायेगा।लेकिन साथ निभाने के लिएहमें अपना भाई दो हजार चौबीसफिर भी सौंप ही जायेगा।दो हजार चौबीस का खुले मन से स्वागत, वंदन, अभिनंदन कीजिए,तेईस की खीझ न चौबीस पर निकालिए,तेईस जैसा भी था अब जा ही रहा हैचौबीस अपनी नयी ऊर्जा के साथ तीन सौ छासठ दिन के लिए आ ही रहा है।बस थोड़ा संयम रखिए अपना रवैया बदलिए,दोष लगाने से अच्छा हैपहले खुद में भी झांक लीजिए।उत्साह उमंग या अतिरेक से बचकर रहिए।अपना और अपनों के साथ साथसमाज, राष्ट्र और संसार का भीथोड़ा थोड़ा ही सही ख्याल भी करें।संयम, सद्भाव, सदाचार, प्रसन्नता संगजाने वाले को विदा करें कीजिएआने वाले का स्वागत कीजिए ।दो हजार तेईस तुझे विदा देते हैंतुम्हारे जाने से मन बहुत भावुक हो रहा हैमगर आना जाना तो संसार की रीति हैदो हजार बाइस गया था तब तुम आये थेअब तुम जा रहे हो तभी तोहम दो हजार चौबीस के स्वागत मेंफूल माला लिए सबके संग खड़े हैं।नववर्ष के साथ सुखद यात्रा की आस लिए हैंविदाई और स्वागत का एक साथनव अनुभव महसूस कर रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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