जय नागरिक
राष्ट्र के सच्चे विधायक, नागरिक! जय हो तुम्हारी।
साक्षी इतिहास के तुम, आरती जग ने उतारी।
प्रजा, जनता, भीड़, जन, गण, विपुल शक्ति समूह हो।
कला – शिल्पी राज का, रचते रहे नव व्यूह हो।
सदा भोजन, वस्त्र, गृह की, व्यवस्था तुमने सँवारी।
बली, अच्छे, बुरे शासक, अनगिनत हैं गए – आए।
किसी ने मोती लुटाए, किसी ने सपने उगाए।
मातृ – भू का ऋण उतारा, रह गई फिर भी उधारी।
दीप्ति की आराधना रत, साधना का तेज – तप हो।
‘विश्व का कल्याण हो’ ,नित मंत्र स्वस्तिक रहे जप हो।
भाषणों से मिले धोखे, अंत में ली जीत पारी।
भूमि बंजर, उर्वरा की, स्वेद – श्रम अपना बहाकर।
हो गया तन – मन सुनिर्मल, ज्ञान सलिला में नहाकर।
तुम्हीं सृष्टा, तुम्हीं दृष्टा, लोक मंदिर के पुजारी।
राष्ट्र के सच्चे विधायक, नागरिक! जय हो तुम्हारी।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र