गीत/नवगीत

जय नागरिक

राष्ट्र के सच्चे विधायक, नागरिक! जय हो तुम्हारी। 

साक्षी  इतिहास के तुम, आरती जग ने उतारी। 

प्रजा, जनता, भीड़, जन, गण, विपुल शक्ति समूह हो।

कला – शिल्पी राज का, रचते रहे नव व्यूह हो।

सदा भोजन, वस्त्र, गृह की, व्यवस्था तुमने सँवारी। 

बली, अच्छे, बुरे शासक, अनगिनत हैं गए – आए।

किसी ने मोती लुटाए, किसी ने सपने उगाए। 

मातृ – भू का ऋण उतारा, रह गई फिर भी उधारी।

दीप्ति की आराधना रत, साधना का तेज – तप हो।

‘विश्व का कल्याण हो’ ,नित मंत्र स्वस्तिक रहे जप हो। 

भाषणों से मिले धोखे, अंत में ली जीत पारी। 

भूमि बंजर, उर्वरा की, स्वेद – श्रम अपना बहाकर।

हो गया तन – मन सुनिर्मल, ज्ञान सलिला में नहाकर।

तुम्हीं सृष्टा, तुम्हीं दृष्टा, लोक मंदिर के पुजारी। 

राष्ट्र के सच्चे विधायक, नागरिक! जय हो तुम्हारी। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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