राजनीति

दालों की आत्मनिर्भरता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी

वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियां की नजरे भारत में तेजी से हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदमों पर हैरानी भरी तान से लगी हुई है, और हो भी क्यों ना, क्योंकि भारत अब पहले जैसा नहीं रहा बहुत तेजी से आगे बढ़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर कदम बढ़ा चुका है, जिसका लक्ष्य बहुत जल्द प्राप्त होगा  वैसे भी रक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा, स्पेस सहित लगभग सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत ही विकसित भारत के सपने को पूर्ण करेगा।वह तब होगा जब हम हर क्षेत्र मेंआत्मनिर्भर हो जाएंगे, आयात से अधिक हमारे निर्यात होंगे इसलिए हर क्षेत्र पर विशेष नज़रें लगी हुई है। चूंकि दिनांक 4 जनवरी 2024 को दालों की आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी की गई, ताकि दालों का उत्पादन बढ़ाने और किसानों को उनका उचित पर्याप्त मूल्य मिले,इसीलिए नेफेड और एनसीसीएफ के द्वारा उत्पादक किसानों को बाजार मूल्य या एमआरपी जो अधिक होगी उसको किसानों के सीधे खाते में भिजवाने और व्यापक पोर्टल द्वारा रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था की गई है, जिसमें किसानों का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, मूंग और चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त भारत को दलहन के क्षेत्र में भी आत्म र्भरता प्राप्त करना समय की मांग है। 

साथियों बात अगर हम दालों की आत्मनिर्भरता पर दिनांक 4 जनवरी 2024 को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की करें तो, तुवर दाल खरीदी पोर्टल पर किसानों के उज्जवल भविष्य के लिए लाभकारी होगा, अरहर किसानों के लिए यह अच्छी खबर है कि अब उनको अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर बेचने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा क्योंकि केंद्र सरकार ने अरहर को कम से कम एमएसपी पर खरीदने की व्यवस्था की है।इसके लिए अरहर किसानों को उपज आने से पहले पंजीयन कराना होगा। सरकार जल्द ही उड़द व मसूर के लिए भी यह व्यवस्था करने वाली है।इस बात की घोषणा केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने दलहन में आत्मनिर्भरता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन और अरहर उत्पादक किसानों के पंजीकरण, खरीद एवं भुगतान के लिए भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित (नेफेड) व भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित (एनसीसीएफ) द्वारा विकसित ई-पोर्टल के लोकार्पण के दौरान की। भारत सालाना 25 से 30 लाख टन दालों का आयात करता है। देश में दलहन का सालाना उत्पादन 250 से 270 लाख टन है। दलहन में आत्मनिर्भरता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि भारत को दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है। इसके लिए किसानों को दलहन की खेती के लिए प्रोत्साहित करना होगा। लेकिन कई बार किसान उनकी उपज का कम दाम मिलने के कारण दलहन की खेती करने से हिचकते हैं। सरकार ने आज किसानों की इस समस्या को दूर करने के लिए और किसानों को उनकी उपजखासकर अरहर का दाम दिलाने की व्यवस्था की है। नेफेड और एनसीसीएफ ने अरहर किसानों के पंजीकरण, खरीद व भुगतान के लिए ई- पोर्टल लॉन्च किया है। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में तूर के किसानों के पंजीकरण, खरीद, भुगतान के लिए ई-समृद्धि व एक अन्य पोर्टल लोकार्पित किया। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) तथा भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ (एनसीसीएफ) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर दलहन में आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित हुई।

साथियों बात अगर कर हम दिनांक 4 जनवरी 2024 को दलों पर आत्मनिर्भरता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि माननीय केंद्रीय गृहमंत्री के संबोधन की करें तो उन्होंने कहा कि ये पोर्टल के जरिए ऐसी शुरूआत की है, जिससे नेफेड व एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को एडवांस में रजिस्ट्रेशन कर तूर दाल की बिक्री में सुविधा होगी, उन्हें एमएसपी या फिर इससे अधिक बाजार मूल्य का डीबीटी से भुगतान हो सकेगा। इस शुरूआत से आने वाले दिनों में किसानों की समृद्धि, दलहन उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता और पोषण अभियान को भी मजबूती मिलती दिखेगी। साथ ही क्रॉप पैटर्न चेंजिंग के अभियान में गति आएगी और भूमि सुधार एवं जल संरक्षण के क्षेत्रों में भी बदलाव आएगा। आज की शुरूआत आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में प्रचंड परिवर्तन लाने वाली है। श्री शाह ने कहा कि दलहन के क्षेत्र में देश आज आत्मनिर्भर नहीं है, लेकिन हमने मूंग व चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दलहन उत्पादक किसानों पर बड़ी जिम्मेदारी डाली है कि वर्ष 2027 तक दलहन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हों। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि किसानों के सहयोग से दिसंबर 2027 से पहले दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा और देश को एक किलो दाल भी आयात नहीं करना पड़ेगी। दलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय और कृषि मंत्रालय सहित अन्य पक्षों की कई बैठकें हुई हैं, जिनमें लक्ष्य प्राप्ति की राह में आने वाली बाधाओं पर चर्चा की गई है। उन्होंने कहा कि कई बार दलहन उत्पादक किसानों को सटोरियों या किसी अन्य स्थिति के कारण उचित दाम नहीं मिलते थे, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होता था। इसके कारण वे किसान दलहन की खेती करना पसंद नहीं करते थे। हमने निश्चित कर लिया है कि जो किसान उत्पादन करने से पूर्व ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराएगा, उसकी दलहन को एमएसपी पर शत-प्रतिशत खरीद कर लिया जाएगा। इस पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद किसानों के दोनों हाथों में लड्डू होंगे। फसल आने पर अगर दाम एमएसपी से ज्यादा होगा तो उसकी एवरेज निकाल कर भी किसान से ज्यादा मूल्य पर दलहन खरीदने का एक वैज्ञानिक फार्मूला बनाया गया है और इससे किसानों के साथ कभी अन्याय नहीं होगा। उन्होने किसानों से अपील की कि वे पंजीयन करें, पीएम की गारंटी है कि सरकार उनकी दलहन खरीदेगी, उन्हें बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।उन्होंने विश्वास जताया कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में किसान कोई कसर नहीं छोड़ेगा। देश का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी शाकाहारी है, जिनके लिए प्रोटीन का बहुत महत्व है, जिसका दलहन प्रमुख स्रोत है। कुपोषण के खिलाफ देश की लड़ाई में भी दलहन उत्पादन का बहुत महत्व है। भूमि सुधार हेतु भी दलहन महत्वपूर्ण फसल है, क्योंकि इसकी खेती से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है। भूजल स्तर को बनाए रखना और बढ़ाना है तो ऐसी फसलों का चयन करना होगा, जिनके उत्पादन में पानी कम इस्तेमाल हो, दलहन इनमें है। दलहन एक प्रकार से फर्टिलाइजर का एक लघु कारखाना आपके खेत में ही लगा देती है। उन्होंने कहा कि वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ इस ऐप का रियल टाइम बेसिस पर एकीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है। आने वाले दिनों में वेयरहाउसिंग का बहुत बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री श्री मोदी की सरकार के कारण कोऑपरेटिव सेक्टर में आने वाला है। हर पैक्स एक बड़ा वेयरहाउस बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इससे फसलों को दूर भेजने की समस्या का समाधान हो जाएगा। उन्होंने किसानों से दलहन अपनाने व देश को 1 जनवरी 2028 से पहले दलहन में आत्मनिर्भर बनाने की अपील की, ताकि देश को 1 किलो दलहन भी इंपोर्ट नहीं करना पड़े। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दालों की आत्मनिर्भरता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी मील का पत्थर साबित होगी।तुवर दाल खरीदी पोर्टल किसानों के उज्जवल भविष्य के लिए अत्यंत लाभकारी होगा।मूंग और चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त भारत को दालों के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता प्राप्त करना समय की मांग है। 

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया