मुझे औरत बना दिया
बच्ची में ही मुझे बड़ा बना दिया
पढ़ने के उम्र में औरत बना दिया
बेटी को बोझ समझकर परिवार
अपनों से कर दिया दरकिनार
मेरी आँखों ने देखे थे सपने हज़ार
बोझ समझ के भेज दिया दूसरे के द्वार
माथे पर सजा दिया सिंदूर की बिन्दियाँ
चूल्हा, चौका, बर्तन ने छीन ली मेरी निंदिया
जीवन मेरी गुड्डे गुड्डी के खेल जैसा दुनियां
डोली में बैठकर बदल दी मेरी दुनियाँ
मेरी हालत पर ना आई किसी को तरस
निःसहाय कर के छोड़ दिया मुझे नीरस
कच्ची उम्र में डाल दी गई जिमेदारी का बोझ
झाडू पोछा ने छीन ली मेरी कलम की ओज
ना समझ को दबा दिया रस्मों-रिवाजों के तले
दिखाकर झूठे सपनें हज़ार बेच दिया बूढ़े के गले
बेटी को उड़ने दो ,पढ़ने दो, देखने दो सपना
होगा विजेता भारत,पूरा विश्व बनेगा अपना
— बलदेव महतो