लघुकथा

रतनलाल का दर्द

रतनलाल कचेहरी में टाइपिस्ट हैं।किसी तरह से शादी रत्ना से किये थे कि रत्ना उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकर सहयोग करेगी। बेहद गरीबी के दिन गुज़र जायेंगे लेकिन पत्नी अपने भाव में रहती है। पढ़ी लिखी ज्यादा नहीं थी लेकिन फैशन का एक-एक मर्म समझती है। रतनलाल जो कुछ कमा धमाकर लाते बेचारे सीधे सारा कमाई पत्नी के दाहिने हाथ में रख देते। 

स्नातक तक पढ़े लिखे थे रतनलाल। ज्यादातर पैसे रत्ना फैशन पर खर्च करने लगी। रतनलाल के न रहने पर कभी कभी वीआईपी होटल में जाती। कभी कभी सिनेमा देखने जाती। अपने पुराने दोस्तों के साथ घूमने फिरने चल देती। एक से बढ़कर एक लिपिस्टिक। एक से बढ़कर एक कंगन, चुड़ियाँ, एक से बढ़कर साड़ियां। बालों को सुंदर बनाने के लिए सेट कराकर रखती। बिल्कुल एक वीआईपी मेमसाहब फेल उसके फैशन के आगे। 

रतनलाल शादी के बाद से हर काम पत्नी के डर के मारे करने लगे। सुबह से शाम तक कोई काम वह बेचारी नहीं करती। बेचारे रतनलाल सुबह उठकर चाय बनाते। बर्तन धुलते। खाना पकाते। जल्दी -जल्दी सारा काम निपटा कर प्रयागराज की कचेहरी जाते। 

यहाँ तक कि रत्ना जिस थाली में खाना खाती। वह थाली रतनलाल को आकर धुलना पड़ता था। कई इन्ही सब चीजों को लेकर पत्नी से दबी आवाज़ में कहते थे। जिस दिन ज्यादा गरम होकर रतनलाल पत्नी से कुछ कहते तो पत्नी कई हफ्तों तक बोलती नहीं थी। इस तरह से बेचारे बार-बार कहते – कहते थक से गये थे। इस प्रकार अपना भाग्य समझकर कर उसका भी सारा काम कर देते थे। 

बाहर में चर्चा है कि रतनलाल काफी भला आदमी है। कोई काम पत्नी को नहीं करने देता है। पत्नी को पूरी तरह से महारानी बना कर रखा है। फैशन में रहती है। सजी धजी रहती है। आराम की जिंदगी जी रही है। सब लोगों को ख्याल है कि रतनलाल कि जिन्दगी बहुत सुकून से है। 

पति होने का सच्चा दर्द रतनलाल को है कि मेरी कमाई का सारा पैसा फैशन में उड़ा रही है और ऊपर से घर का सारा तामझाम। यह एक स्त्री विमर्श नहीं एक पुरुष विमर्श की बात है। स्त्री का दर्द आवाज करता है लेकिन पुरुष का दर्द सिर्फ चुपके चुपके सिसकियां ले रहा है। 

— जयचन्द प्रजापति “जय’

जयचन्द प्रजापति

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