ग़ज़ल
टूटते इंसान से जज्बात की बातें न कर
हो सके तो घात पर प्रतिघात की बातें न कर
जिसके दम से है रवानी जिंदगी के खेल में
बे सबब तू उस लहू की जात की बातें न कर
हर तरफ कब्रों जनाजा अर्थियों का शोर है
घर ठिठोली ब्याह की बारात की बातें न कर
भीष्म सा आहत पड़ा है आज जो रणभूमि में
नासमझ उससे तो अब शह मात की बातें न कर
खुद समझ मेरे गजल ओ गीत के अंदाज को
मुझसे मेरे माज़ी के हालात की बातें न कर
देख वो किरणे सुनहरी ले सवेरा आ गया
भूल जा वो काली साये रात की बातें न कर
लौट कर वापस न आया एक भी लम्हा कभी
हाँ नये इस साल में सदमात की बातें न कर
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव