लघुकथा

वक्त

तभी फोन दुबारा बजी “हलो” मैंने कहा

उधर से अनजाना स्वर सुनाई दिया “मैं स्वेता बोल रही हूं क्या आप महिमा बोल रहीं”

“जी हां, मैं महिमा बोल रही हूं”

“मुझे पहचाना”

“जी माफ़ कीजिए मैंने आप को पहचाना नहीं”। 

“मैं तुम्हारे स्कूल की सहेली स्वेता बोल रही हूं “उधर से आवाज़ आई।

मैंने हैरानी से पूछा “मेरा नम्बर तुम्हें कहां से मिला?” 

“तुम्हारे छोटे भाई भानु से, उसने कहा तुम भी कानपुर में रह रही हो ! मैं भी यही हूं कभी हमारे घर आओ” उसने कहा

“बिल्कुल,मैं जल्द ही तुम से मिलती हूं” कह कर मैंने फोन रख दिया।

कुछ दिनों बाद मैं उससे मिलने गई। एक छोटा सा 2 BHK का फ्लेट था। घर बिल्कुल सामान्य सा था उसका बेटा दस बारह साल का,पति शायद आफिस गए थे हमने काफी देर स्कूल और बचपन की बातें करी। जैसे ही मैं चलने को हुई उसने थोड़ी देर और रुकने को कहा मैं भी बैठ गई। थोड़ी देर में उससे विदा लेकर अपने घर की ओर चल पड़ी।

स्वेता से मिलकर स्कूल और कॉलेज की सारी यादें ताजा हो गई। मैं तो स्वेता को देख कर हैरान रह गई। साधारण से कपड़े अधपके बाल चेहरे पर थकान और झुर्रियां, थोड़ी मोटी भी हो गई थी। मैं सोचने लगी यही वो लड़की है जिसका सारा मोहल्ला दिवाना था। स्कूल से लेकर कालेज तक इसकी खूबसूरती की चर्चे थे। इसे अपने रुप रंग का बड़ा अहंकार था अपने आगे किसी को कुछ न समझना , मेरे जैसी लड़की की तो सरे आम बेइज्जती कर देती थी। ख्वाब तो इतने बड़े -बड़े थे कि पूछो नहीं, किसी रईस और स्मार्ट लड़के उसकी शादी होगी। लेकिन………आज उससे मिलकर लगा वक्त भी क्या चीज!!!

अचानक फोन की घंटी बजी मैंने घड़ी की ओर देखा 9 बजने वाले थे, मैंने जल्दी जल्दी लंच पैक किया और रोहित का नाश्ता टेबल पर रख दिया। काम निबटा कर मैंने फोन देखा कोई अननोन नम्बर था, 

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P