हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा का मिले अधिकार*
भाषा मानव सभ्यता की जननी है। भाषा के बिना मानव अधुरा है। भाषा के बिना मानव का विकास संभव नहीं है। भाषा मानव जीवन के रूप में प्रकाश है। हिंदी भाषा देश की धड़कन है। हिंदी हमारी मातृभाषा ही नहीं बल्कि हमारी मैत्री भाषा है। क्योंकि हिन्दी हमारे अभिमान की भाषा है। भारत के गौरव की भाषा है। भारत के शान की भाषा है। देश की अस्मिता की भाषा है। यह विकास की भाषा है। यह व्यवहार की भाषा है। यह आजादी के पहचान की भाषा है।हिंदी भाषा देश की धड़कन है। हिंदी हमारे भारत की पहचान की भाषा है। हमारे अभिमान की भाषा है। भारत के गौरव की भाषा है। भारत के शान की भाषा है। देश की अस्मिता की भाषा है। यह विकास की भाषा है। यह व्यवहार की भाषा है। यह आजादी की भाषा है।हिंदी शब्द फारसी भाषा के ‘हिंद’ से लिया गया है जिसका अर्थ है सिंधु नदी की भूमि।
हिंदी वैज्ञानिक भाषा तो हे ही साथ ही यह लचीली, सहज, सरल और मैत्री भाषा है जो व्यवहारिक भी है और सहज अभिव्यक्ति में सक्षम भी है।हिंदी का शब्दकोश आज विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोश है। हिंदी वर्णमाला अन्य भाषाओं की वर्णमाला से सबसे बड़ी है। हिंदी को जिसमें ढालो उसमें ढल जाती है। यह वैज्ञानिक भाषा है। जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। यह संस्कृत भाषा से उपजी हुई है।
आजादी के बाद 14 सितंबर 1953 में पंडित नेहरू ने प्रथम बार 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने का फैसला लिया था।14 सितंबर को हिंदी को हिंदी दिवस मनाने का मुख्य कारण संवैधानिक भाषा के रूप में हिंदी को दर्जा मिला था।संविधान ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया था। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में यह उद्धृत किया है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय होगा।
हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा, के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।हिंदी को राजभाषा बनाने का फैसला 14 सितंबर 1949 को किया गया था।
देश में कुछ अल्प बुद्धि के नेताओं ने हिंदी भाषा का विरोध भी किया और उन्होंने ने हिंदी भाषा के विरोध में 13 अक्टूबर 1957 को हिंदी विरोधी दिवस के रूप में मनाया था।
एक भाषा एक राष्ट्र के सूत्र से देश की पहचान होती है। विकास गति तीव्र होती है।
महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। हिंदी हमारी मातृभाषा ही नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा है। यह देश के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। जिसका अपना व्याकरण है। अपना इतिहास है। महात्मा गांधी ने 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना मत रखा था।
दुनिया के अनेक देशों में हिंदी बोली जाती है। पढ़ी जाती है और समझी जाती है।
हम भारतीयों के लिए मन की और दिल की बात करने की सहज एवं सरल भाषा हे तो वह हिंदी ही है।
हिंदी भाषा हमारी राष्ट्रीय धरोहर और गौरव का प्रतीक है। दुनिया में बसे भारतीयों को एक सूत्र में बांधने हेतु विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।
शिक्षाविद् एवं भाषा विशेषज्ञ डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल के अनुसार हिंदी भाषा विश्व में अब प्रथम स्थान पर है।
भारत के अलावा नेपाल, तिब्बत, पाकिस्तान, फिलिपींस,फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, अमेरिका न्यूजीलैंड, युगांडा ,सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका,यूनाइटेड,थाईलैंड, हांगकांग, कनाडा, और जर्मनी में हिंदी बोली भी जाती हैं एवं समझी भी जाती है।इन देशों में हिंदी भाषा प्रचुर मात्रा में बोली,समझी एवं लिखी जाती है।
2023 में हिंदी दिवस की थीम थी_”हिंदी को जनमत की भाषा बनाना, बगैर उनकी मातृभाषा की महत्ता को भूले।”
विश्व हिंदी दिवस 2024 की थीम -“हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक” है।
दुनिया में अनेक देशों में हिंदी पढ़ाई जाती है। अमेरिका में ही देखें तो वहां लगभग 150 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है।
हिंदी भारत की पहचान ही नहीं बल्कि विश्व में भारत को जोड़े रखने में सक्षम भाषा है।
दुनिया भर में भारत को जोड़ने एवं हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु 10 जनवरी 1974 को महाराष्ट्र के नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया था। इस महासम्मेलन में दुनिया के 30 देश के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था तथा इस महासम्मेलन की अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने की थी। इसके बाद सर्वप्रथम नार्वे के भारतीय दूतावास में पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया था।
देश के 13 वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष 2006 में 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
हिंदी भाषा का साम्राज्य तो बढ़ रहा है। किंतु जो मान- सम्मान हिंदी का मन से और दिल से मिलना चाहिए वह अभी अधूरा है। हिंदी अभी रोजगार की भाषा पूर्ण रूप से नहीं बनी है यह भी एक चिंता का विषय है।हमारी हिन्दी भाषा के कदम विश्व भाषा के रूप में तो बढ़ते जा रहे हैं किन्तु घर में राष्ट्र भाषा के रूप में सपना अधुरा है।
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की 6 आधिकारिक भाषाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत भी अपना महत्वपूर्ण देश के रूप में वजूद रखता है। हिंदी को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने की शुरुआत प्रथम विश्व सम्मेलन के रूप में हुई थी। बाद में देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर विश्व पटल पर हिंदी का नाम ऊंचा किया था।
हिंदी आज लोकप्रिय भाषा के रूप में विश्व स्तर पर स्वीकार की गई है। यह सोशल मीडिया और इंटरनेट की भाषा बन चुकी है। विश्व स्तर पर दूरदर्शन, हिंदी फिल्मों और हिंदी पत्र पत्रिकाओं ने हिंदी के प्रचार- प्रसार में कोई कमी नहीं रखी है। साथ ही प्रवासी भारतीयों ने हिंदी को विश्व स्तर पर पहचान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज हिंदी ने चीनी भाषा मंडारिन को भी पीछे छोड़ दिया है।
हिंदी केवल माल बेचने वाली। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद विज्ञापन कि भाषा के रूप में न बनी रहे। बल्कि हिंदी अपनी मौलिकता को बचाते हुए आगे बढ़े तो बात कुछ ओर होगी। हिंदी विश्व के बाजार की भाषा के रूप में भी पहचान बना रही है किंतु मिलावटी भाषा के रूप में भी देखी जा रही है। यह दुर्भाग्य की बात है। सरकारी कार्यालय में भी हिंदी का स्थान में सुधार अभी पूर्ण रूप से हुआ नहीं है। हिंदी को सम्मान आजादी के बाद जो मिलना चाहिए था वह अभी तक नसीब नहीं हुआ है। कानून की भाषा में भी आज बदलाव करने की जरूरत है। हिंदी के मानकीकरण में भी कुछ संशोधन कर उसे सहज और सरल बनाने की भी आवश्यकता है। आज विदेशी छात्रों को पढ़ने के लिए हमारे देश में हिंदी सक्षम बनाकर उन्हें ज्ञान प्रदान करें ताकि विश्व स्तर पर हिंदी का प्रचार प्रसार तीव्र गति से हो और हिंदी अपनी पहचान विश्व स्तर पर प्रथम स्थान के रूप में हो। हमारी हिंदी रोजगार की भाषा के रूप में हो। आज देश के युवाओं को अन्य भारतीय भाषा को सीखने एवं हिंदी को सीखने की आवश्यकता है।
आज विश्व के लगभग 180 देशों में हिंदी दिवस मनाया जाता है। वैश्वीकरण और भूमंडलीकरण के रूप में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। हिंदी को विश्व भाषा बनाने के ठोस कदम उठाने चाहिए। आज समस्या यह है कि हिंदी को हम राष्ट्रभाषा के रूप में ना मान्यता दिला पा रहे हैं और नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं आधिकारिक भाषा बना पा रहे हैं। यह विडंबना है हमारी हिन्दी भाषा के साथ। भाषा की शक्ति से ही राष्ट्र मजबूत बनता है। शक्तिशाली बनता है। यह तभी हो सकेगा जब हम सभी तन मन और दिल से, कदम से कदम मिलाकर हिंदी राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा हेतु प्रयास करें। भाषा ही एक वह सेतु है जो विश्व को जोड़ने का पुल के रूप में कार्य करता है।
तभी हमारा “वसुधैव कुटुंबकम” का सूत्र सार्थक हो सकेगा।
भारतेंदु जी ने कहा था-
“निज भाषा उन्नति है, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान को मिटे न हिये को शूल।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देखन से लै करहू भाषा माही प्रचार।।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्वैहैं सोय।
लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।
— डॉ.कान्ति लाल यादव