गजल
जाने क्यों उकता जाता मन अब जी करके क्या करना है
फिर खुद से करता है प्रश्न ये बिना मौत क्यों कर मरना है
जिसने भेजा वही बुलाए तब समझो अच्छे दिन आए
जीवन का उपहार है कविता और सतत बहता झरना है
चलेगा कब तक खेल सुहाना नहीं जानता कोई सयाना
हम भी खेल रहे हैं पारी हार जीत से क्या डरना है
जीवन के सब रंग दिखाता कभी हसाता कभी रुलाता
और समय आ जाने पर ही शीशा स्वयम दरकना है
कुछ कहते जीवन मधुशाला साकी गजब पिलाने वाला
लेकिन इस मयखाने में तो सबको ही यहां बहकना है
अगम लहर है इस समुद्र की है बस इसके दो ही किनारे
और ध्रुव सत्य हर एक प्राणी को बस उस पार उतरना है
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव