गजल
रंज ओ ग़म की ये तस्वीर नहीं बदलेगी
हौसले के बिना तक़दीर नहीं बदलेगी
जितनी भी बार पुकारोगे इसे होठों से
पर मुहब्बत की ये तहरीर नहीं बदलेगी
रहेगा ये ही जुनू तारे तोड़ लाने का
मेरे जज़्बात की तासीर नहीं बदलेगी
कितना भी चाहूं मुहब्बत में फना हो जाऊं
मेरी चाहत की मगर हीर नहीं बदलेगी
खूब झकझोरो ये बुनियाद मगर याद रहे
इससे रिश्तों की तो शहतीर नहीं बदलेगी
कितनी शिद्दत से बनी है ये वतन की तस्वीर
चंद लोगों से ये तामीर नहीं बदलेगी।
— ओम निश्चल