क्षणिका

नींद

इन आँखों में

बैरी नींद न आई

पूरी रात गुजर गई

ख्वाबों में

कुछ ऐसे ख्वाब जो पूरे न हुए

कुछ ऐसे भी थे

जिनका न था कोई

ओर छोर

जिंदगी

जिंदगी तमाम उम्र

अधूरी ही रहती है

जिस दिन पूरी हो गई

तो जिंदगी ही न रही 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020