दोहे – सरयू की जलधार
त्रेता युग सा लग रहा, अब सारा संसार ,
वैतरणी है ‘रामलला,’वही करेंगे पार।।
मंदिर की स्थापना ,पूजन में है भक्त,;
जैसे भगवा हो गए ,तन के सारे रक्त ।
पथ भी जगमग हो गए ,भीतर भरे प्रकाश ,
बूंद बूंद में राम है, ये ‘सरयू ‘को आस।
मठ मंदिर जीवंत हुए, भरे लबालब कुंड ;
तपोभूमि में आ गए, गिद्धों के भी झुंड।
कोना-कोना राम धुन ,उठती जय -जयकार ;
और भी निर्मल हुई ,”सरयू “की जलधार ।
हर सांसों में राम है, अधरों में है गान;
टोली भी थकते नहीं ,छेड़ सुरों की तान।
अब अयोध्या बन गई ,नगरी भव्य ,विशाल ;
पन्नों में भी दर्ज है,इसके सभी मिसाल ।
‘अतिथि देवो भव:’ , सूक्ति करके याद ;
स्वागत, वंदन कर रहा ,सबसे जोड़े हाथ।
मीठी वाणी बोलता, मानस का हर छंद ;
मीठे कितने हो गए, फूलों के मकरंद।
कण-कण में बसे हुए,जन-जन के श्री राम;
सूरज की पहली किरण, करती उन्हें प्रणाम।
राम कथा संजीवनी, ये ‘सृष्टि ‘के बीज;
ये तो अजर-अमर है, सांसों के ही बीच।
लोक रक्षक राम तो, हैं करुणा की झील;
विश्व पटल पर जल उठी ,भक्ति की कंदील।
सूर्य रश्मि से लिखा, हर शिला में नाम,
हुए धरा में अवतरित, त्रेता युग के राम।
— सतीश उपाध्याय