कविता

मौत का सौदागर

जवानी को कर रहा खोखला

स्कूल कालेज सब जकड़े इसने

गांव अछूते नहीं रहे अब

गली मोहल्ले भी पकड़े इसने

माता पिता में बड़ी लाचारी

कैसे होगी यह दूर बीमारी

दीमक लगी हुई है सारे

बर्बाद कर दिए युवा हमारे

नशा बडे किया करते थे पहले

अब बच्चे भी इसके लिए लड़ रहे हैं

खाने को बेशक कुछ न मिले

चिट्टा खाने के लिए मर रहे हैं

जिम्मेवारी से अपनी हम सब

दूर दूर क्यों भाग रहे है सारे

कहां गए वो संयुक्त परिवार

कहाँ गए संस्कार हमारे

पैसे के लालच में हम सब

नशे में इनको झोंक रहे

अपने ही बच्चों की पीठ में

खंजर क्यों हम भोंक रहे

जहां भी देखो अजब तमाशा

रोज़ दिखाया जाता है

कहीं भागता फिरता छुपता

चिट्टे में पकड़ा जाता है

मेरे देश में पैसे के लिए क्यों

आदमी इतना नीचे गिरता है

युवा चिट्टे की तलाश में

क्यों मारा मारा फिरता है

मौत का सौदागर बन कर

घूम रहा है इधर उधर

बस्ती बस्ती नुक्कड़ नुक्कड़

बच कर जाएं कहाँ किधर

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र