हास्य व्यंग्य – राजनीति के होशियार
इस दुनिया में जीने के लिए बहुत सारी चीजों की जरूरत पड़ती है जैसे भोजन, आग,हवा, पानी लेकिन इसके अलावा और भी बहुत सारी चीज हैं जो जीने के लिए जरूरी है उन्हीं में से एक है होशियारी, समझदारी भी बहुत जरूरी है। होशियार होना धरती पर हवा इतना ही जरूरी है । होशियार होना बहुत ही अच्छी बात है आजकल की दुनिया में बिना होशियार हुए गुजर-बसर हो ही नहीं सकता। आप जहां भी जाएंगे आपका होशियार लोगों से सामना होगा । घर,बाजार, ऑफिस जिधर भी जाएं ऐसे लोग थोक के भाव में मिलेंगे। जो आपका काम भले ही बिगड़ जाए लेकिन सबसे पहले वह अपना मतलब और अपना काम देखते हैं।
पर राजनीति का होशियार होना बहुत ही अलग बात है और बहुत ही निराली बात होती है। आम आदमी जब होशियार होता है तो ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार का पेट सफलतापूर्वक पाल लेने की क्षमता अर्जित करता है। लेकिन जब एक राजनेता होशियार हो जाता है। तब वह अपने पूरे खानदान, रक्त संबंधी रिश्तेदारो का धरती पर जन्म लेना सार्थक कर देता है । इस धरती पर आप ही देखिए सबसे बड़ी जन्म लेने की सार्थकता क्या है। इस धरती पर जन्म हो और सरकारी नौकरी मिल जाए भला उस इंसान को किसी और स्वर्ग की क्या अपेक्षा होगी ।
होशियार राजनेता सीधे जमीन से कुर्सी की तरफ की यात्रा करता है। जमीन से यहां पर तात्पर्य आप हम जैसे साधारण आम आदमी से है। राजनीति का असल होशियार चंद वही होता है जो जानता है कि कब कहां किसके साथ खड़ा रहना है और किसके हां में हां मिलानी है । कब किसके गले में फूल माला पहनानी है। और कब तक किसको अपना अपना और पराया बताना है । और किस को कब अपनी पीठ दिखानी है। और कब गिरगिट के जैसे रंग बदल लेना है। कब कहां कितना कैसे बोलना है वह अच्छी तरह से जानता है। और कहां पर मौन रह जाना है । दुनिया भले ही इसके लिए उसे अच्छा या बुरा कहे लेकिन वह जानता है कि यह एक अदभुत गुण है।
राजनीति का होशियार चंद अपना पेट तो भरपेट पालता ही है अपने पूरे खानदान का भी पेट बहुत अच्छे से पाल लेता है । पूरे देश में भले ही बेरोजगारी पसरी रहे लेकिन उसके परिवार में कोई भी बेरोजगार नहीं रहता है। सब कहीं ना कहीं एडजस्ट हो जाते हैं। भले ही इसके चक्कर में जनता आधी पेट और भूखी मरती रहे । जनता का तो काम ही है कभी भूख से लड़ना तो, कभी बेरोजगारी से लड़ना, तो कभी सड़क, शिक्षा, स्वच्छता के लिए हुडदंग मचाना। आखिर कोई कितना उनकी समस्याओं को हल करें। अतः होशियार राजनेता इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता है।
होशियार राजनेता जानता है कि सत्ता हमेशा के लिए कभी भी नहीं होती है । यह ऐसी प्रेमिका होती जिसको चाहे जितना भी प्यार करो यह कभी भी बेवफाई कर सकती है। इसलिए होशियार राजनेता सबसे पहले अपना देखता है। और सड़क बनवाने से पहले अपना सुंदर सा शीश महल बनाता है। जहां वह अपना शांति से बुढ़ापा गुजर कर सके। जनता भले ही टूटी फूटी साइकिल पर चलती रहे लेकिन वह सबसे पहले अपने लिए लग्जरी गाड़ियों का इंतजाम करता है । होशियार राजनेता अपनी नेक नियति की दुहाई दे दे कर और अपनी चतुराई का परिचय देकर चुनाव जीत ही जाता है । असली राजनेता कभी भी चुनाव नहीं हारता है उसे चुनाव जीतने के सारे गुण पता रहते हैं । होशियार राजनेता कुर्सी पर नहीं जनता के दिल पर राज करने की कला जानता है। वह जानता है एक बार वह दिल पर राज करेगा तो कुर्सी तो अपने आप उसके पास दौड़ कर आएगी।
— रेखा शाह आरबी