गजल
घरोंदों को बनाने में जमाने बीत जाते हैं
संभाला गर न जाये तो उजड़ पल भर में जाते हैं |
भुला कर ज़िंदगी के ग़म संजोले हर खुशी को हम
नही आते कभी दिन लौट कर जो बीत जाते हैं |
उदासी को भुला आजा जरा हँस लें हँसा लें अब
भरोसा ज़ीन्दगी का क्या भरम सब टूट जाते हैं |
झगड़ना रूठना फितरत बुरी तू छोड़ दे यह सब
सुकूँ छिनता दिलों का और रिश्ते टूट जाते हैं |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’