गीतिका/ग़ज़ल

गजल

घरोंदों को बनाने में जमाने बीत जाते हैं
संभाला गर न जाये तो उजड़ पल भर में जाते हैं |

भुला कर ज़िंदगी के ग़म संजोले हर खुशी को हम
नही आते कभी दिन लौट कर जो बीत जाते हैं |

उदासी को भुला आजा जरा हँस लें हँसा लें अब
भरोसा ज़ीन्दगी का क्या भरम सब टूट जाते हैं |

झगड़ना रूठना फितरत बुरी तू छोड़ दे यह सब
सुकूँ छिनता दिलों का और रिश्ते टूट जाते हैं |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016