विक्रम, बिलखता बेताल और भारतीयों के पितरों की अतृप्त आत्माओं तथा चराचर जगत का गगनभेदी रुदन
तीन दिन पूर्व की, इसी अमावस की बात है, सम्राट विक्रमादित्य रात बारह बजे अपने आराध्य भगवान महाकाल के मन्दिर में अपने विशेष कक्ष में ध्यान में लीन हो गये। परन्तु अचानक वे उद्विग्न हो उठे और रात तीन बजे ही ध्यान त्याग कर व्यग्रता तथा उग्रता के साथ कक्ष से निकलें। हाथ में म्यान से निकली चमचमाती तलवार थी। लाल-लाल आँखों से चिंगारियां अन्धेरे में ऐसे चमक रही थी, जैसे लाखों जुगनू कतारबद्ध होकर निकल रहे हों। वे उछल कर अपने घोड़े पर बैठे। उनके क्रोध को देख और स्थिति की गम्भीरता का अनुमान लगाकर, सेनापति सहित सैनिकों की एक अतिदक्ष टुकड़ी उनके पीछे जाने को उद्यत हुई, तो विक्रम ने उन्हें रोक दिया और अकेले ही श्मशान की ओर अग्रसर हो गए।
क्रोधावेग में विक्रम ने घोड़े पर बैठे-बैठे ही श्मशान के पास छाती तान कर खड़े विशाल वृक्ष पर उछल कर सबसे ऊंची डाल पर सो रहे बेताल को निर्ममतापूर्वक अपने कन्धे पे डाला, नीचे कूदें और घने वन की ओर प्रस्थान कर दिया।
परन्तु विक्रम कोई प्रश्न करते इसके पहले ही बेताल धाड़े मार-मार कर रोने लगा। निर्जन और नीरव वन में उसका इसप्रकार धाड़-धाड़ रोना अत्यन्त ही डरावना सिद्ध हो रहा था। उसने रोते-रोते ही अचानक विक्रम के पैर पकड़ लिए।
विक्रम कुछ समझ नहीं पा रहा था, क्योंकि वह बेताल से एक प्रश्न के उत्तर की अपेक्षा लिए आधी रात को वन में आया था। विक्रम ने बेताल को ढाढस बंधाते हुए अपने हाथों से सहारा देकर उसे खड़ा किया और बोला- बेताल ! बता तो सही हुआ क्या है?
अपने रुदन को रोकने का असफल प्रयास करते हुए रुंधे स्वर में बेताल बोला- राजन ! पांच सौ वर्षों के उपरान्त मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है —
विक्रम [बात काटते हुए]–बेताल ! यह तो अत्यन्त प्रसन्नता और गौरव का विषय है, इसमें रोने की क्या आवश्यकता है?
बेताल – राजन ! इस बात से तो न केवल मैं अपितु सभी अशरीरी आत्माएं और चराचर जगत अत्यधिक प्रसन्न है। बेताल का यह वाक्य समाप्त होते ही करोड़ों अशरीरी आत्माएं प्रकट हो गई और जय श्रीराम, जय-जय सियाराम, जय रघुनाथजी के जयकारे लगाने लगी, पूरा वन जयकारों से गुंजायमान हो गया। और तो और लाखों-करोड़ों वन्यजीवों ने भी अपने-अपने स्वरों में जयकारे लगाने आरम्भ कर दिए, पक्षियों ने भी सूर्योदय की प्रतीक्षा किए बिना ही जयकारों का कलरव कर अपना योगदान देना आरम्भ कर दिया। अचानक वृक्षों, लताओं, झाड़ियों में भी असमय ही अरबों की संख्या में फल-फूल खिल उठे और उनके पत्तें पवन के स्पर्श से जय श्रीराम की मनमोहक ध्वनि निकालने लगे।
हतप्रभ होते हुए विक्रम ने चारों ओर देखा तो जयकारों के साथ-साथ रात तीन बजे ही पूरे उत्तरी पूर्व क्षितिज पर भगवान सूर्य का दिव्य प्रकाश दिखाई देने लगा, ऐसा लग रहा था कि भगवान श्रीराम के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के स्वागत में उत्तरायण के पूर्व ही करोड़ों सूर्य पूर्वोत्तर क्षितिज पर प्रकट होने के लिए आतुर हैं।
करोड़ों सूर्यों की स्वर्णिम आभा और जयकारों से अत्यन्त प्रसन्न होकर विक्रम ने भी दोनों हाथ उठाकर जय जय श्रीराम का गगनभेदी जयकारा लगाया। विक्रमादित्य को प्रसन्न जान कर भगवान शिव के सभी गण नन्दीजी के नेतृत्व में प्रकट हो गए और वे सभी विचित्र शारीरिक रचनाओं वाले भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी आदि वहां प्रकट हो गए और जोर-जोर से नगाड़े, ढोल, दुन्दुभी, शंख, घंटा, घड़ियाल, मजीरें आदि बजाने लगे, अनेक-अपने मुंह से ही विभिन्न ध्वनियाँ निकाल कर अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मानो आज ही चराचर जगत के स्वामी भगवान श्रीराम के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा घने वन में हो रही हो।
कुछ पलों तक विक्रम मंत्रमुग्ध हो उस अप्रतिम दृश्य को देखता रहा। फिर उसने बेताल से पूछा-तुम रो क्यों रहे थे?
बेताल- राजन ! मोदी विरोधी हिन्दू राजनेता, जिन्होंने श्रीराम मन्दिर का विविध आयामी उपायों से दशको तक विरोध किया था और षड्यंत्र रचकर दुर्दान्त बाधाएं डाली थी, जिनका जीवन ही रामभक्तों के रक्त से आपादमस्तक रंजित है, और जिन्होंने करोड़ों रुपयों का शुल्क देकर ख्यात अभिभाषकों के माध्यम से अनर्गल तथ्य न्यायालय में प्रस्तुत किए थे, भगवान श्रीराम को काल्पनिक और मिथकीय बताया था, रामभक्त नल और नील के नेतृत्व में लाखों वानरों के सहयोग और रामकृपा से बनाए गए रामसेतु के विषय में भी मिथ्याचार किया था। वे सभी छद्मी आज अत्यन्त दृढ़तापूर्वक कह रहे हैं कि भगवान श्रीराम उनके भी आराध्य और पूर्वज हैं और श्रीराम जब बुलाएंगे, हम अयोध्या के श्रीराम मन्दिर के दर्शन करने जाएंगे। इसतरह वे श्रीरामद्रोही और हिन्दू विरोधी लोग स्वयं को राम का सच्चा भक्त सिद्ध करने में लगे हुए हुए हैं।
विक्रम- बेताल ! ये बातें तो विश्व का न केवल हरेक नागरिक अपितु हर जीव जानता और मानता है कि ये लोग अपने राजनीतिक हितों के चलते हिन्दू होते हुए भी पूर्ण हिन्दू विरोधी हो चुके हैं, ये लोग स्वप्न में भी हिन्दुओं का हित नहीं करने वाले हैं। परन्तु यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि इसमें रोने की क्या आवश्यकता है?
बेताल- राजन ! मैं इसलिए नहीं रो रहा था?
विक्रम [बात काटते हुए]- बेताल ! फिर किस लिए रो रहे थे?
बेताल [उसकी आँखों से अश्रुधार बह रही थी] जैसे-तैसे स्वयं को सम्भालते हुए वह बोला-राजन ! मरने से पूर्व मैं सनातनी और रामभक्त था, राजन ! मैं अकेला ही दुखी नहीं हूँ, उसका वाक्य समाप्त भी नहीं हुआ था कि अचानक करोड़ों की संख्या में उपस्थित अशरीरी आत्माओं ने भी धाड़-धाड़ रोना आरम्भ कर दिया, उनके रोने के मंतव्य को समझ कर वन्यजीवों, पक्षियों और वृक्ष-लताओं ने भी रोना आरम्भ कर दिया, सारे फल-फूल झड़ गए, पूर्व क्षितिज पर फिर से घनघोर अंधेरा पसर गया और समूचा वातावरण अत्यधिक मार्मिक तथा वेदनीय हो गया।
विक्रम [उद्विग्नता के साथ] – बेताल ! तू तो ये बता कि तू और ये आत्माएं बिलख क्यों रही हैं?
बेताल [स्वयं को सम्भालते हुए, आँखों के आंसूओं को बरबस रोकते हुए बोला]- राजन ! मुझ सहित ये सारी आत्माएं भारत में रह रहें, हिन्दुओं और धर्मान्तरित हिन्दुओं, या यूँ कहो कि सभी भारतीयों के पितर हैं, पूर्वज हैं और हम सब इसलिए दुखी हैं कि अभी भी करोड़ों भारतीय इन दुष्टों को अपना हितैषी मान रहे हैं। ये लोग न तो हिन्दुओं के हितैषी हैं और न ही अन्य धर्मावलम्बियों के हितैषी हैं और न कभी ये उनके हितैषी हो सकते हैं। ये मतिभ्रमित भारतीयों के समर्थन के बलबूते अपनी-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।
कुछ क्षणों रुककर, लम्बी गहरी सांस लेते हुए, बेताल बोला- राजन ! एक बात बताओ, हिन्दुओं को तो छोड़ दो, क्या इन्होने कभी मुस्लिमों के वास्तविक विकास के लिए कुछ किया है? नहीं ना। हमारी पीड़ा यह है कि अभी भी करोड़ों दिग्भ्रमित भारतीय इन दुष्टों के अनुयायी बने हुए हैं, इस कारण भ्रमित लोग श्राद्ध आदि में पितरों की शान्ति के लिए जो भी कर्मकाण्ड करते हैं, वे निष्फल हो रहे हैं और पितर इनके क्रियाकलापों से अतृप्त तथा शान्त हैं और दुखी ह्रदय से इधर-उधर निरन्तर भटक रहे हैं।
ठण्डी सांस लेकर बेताल बोला- और राजन ! आप तो जानते ही हैं यदि पितरों की आत्माएं अतृप्त, अशान्त और असंतुष्ट रहेंगी तो इन्हें धनादि की सुविधा होते हुए भी सुख, शान्ति और निरोगिता नहीं मिल सकेगी। सबसे बड़ी वेदना यह है कि ये करोड़ों पितर अपने ही वंशजों को दुखी, अस्वस्थ और अशान्त नहीं देखना चाहते हैं, उन्हें सुख, शान्ति और निरोगिता का वरदान देते तो हैं परन्तु राम विरोधियों के अनुयायी होने के कारण उनके आशीर्वाद फलीभूत नहीं हो रहे हैं। राजन ! आप ही बताइए, कौन माता-पिता होंगे जो अपनी सन्तानों को दुखी, अस्वस्थ और तनावपूर्ण देखकर प्रसन्न रहेंगे, बस, राजन हमारे रोने का यही कारण है।
विक्रम- बेताल ! बात तो तेरी पूर्णरूपेण सत्य है। अच्छा, तू ही अपनी अलौकिक शक्तियों के आधार पर बता कि इन्हें दुखों से कैसे मुक्ति मिलें?
बेताल –राजन ! दुष्ट नेताओं के अनुयायी बने हुए अधिकाँश भारतीय, विशेष रूप से सनातनी या तो किसी कारण से भाजपा को पसन्द नहीं करते हैं या स्थानीय भाजपा नेताओं से उनके व्यक्तिगत मनभेद या मतभेद हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, बिना प्रमाण के ही, दुष्ट लोगों और स्वार्थी नेताओं के बहकावे में आकर मुस्लिम विरोधी मानते हैं और कहते हैं कि संघ और भाजपा ने ही हिन्दू और मुस्लिम के बीच खाई खोदी है, जबकि वास्तविकता यह है कि भारत का विभाजन ही दुष्ट नेताओं की हिन्दू विरोधी नीतियों के आधार पर हुआ था।
बेताल रुककर बोला- राजन ! वर्तमान के जितने भी राजनीतिक दल हैं, वे तुष्टीकरण आधारित हैं, हिन्दू पूरीतरह उपेक्षित हैं, एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तो निर्लज्जतापूर्वक और हिन्दुओं की उपेक्षा से तनिक भी विचलित हुए बिना ही, निर्भीकतापूर्वक कहा था कि भारत के सभी संसाधनों पर प्रथम अधिकार अल्पसंख्यकों का है। दुखद यह है राजन कि हिन्दुओं के देश में हिन्दुओं की ऐसी उपेक्षा से भी हिन्दुओं को समझ में नहीं आया था। इस अकेले स्पष्ट उद्घोष से ही पता चलता है कि हिन्दू अभी भी कितनी मूर्च्छा में जी रहा है, अपनी सुख-सुविधा और परिवार में पूरी तरह तल्लीन उसे पता ही नहीं चल रहा है कि देश-दुनिया में क्या-क्या घटित हो रहा है।
अस्तु, राजन ! आपने समाधान पूछा है तो मेरा अभिमत है कि भाजपा और संघ से अप्रसन्न हिन्दुओं को अपना एक पृथक राष्ट्रीय स्तर का राजनीतिक दल बनाना चाहिए, जो तुष्टीकरण से परे हो, सभी भारतीयों का हितसाधक हो, भारत तेरे टुकड़े होंगे के स्थान पर एकता में अनेकता और विविधता में एकता के सिद्धांत पर काम करने वाला हो।
विक्रम- बेताल ! इससे क्या लाभ होगा?
बेताल- राजन ! भाजपा और संघ से अप्रसन्न हिन्दुओं को आत्म तुष्टि का अनुभव होगा और वे हिन्दू तथा हिन्दुत्व विरोधी राजनीतिक दलों के चंगुल से बच सकेंगे। और राजन ! सबसे बड़ी बात यह है कि ये करोड़ों-अरबों पितरों की आत्माओं के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। साथ ही देश को हिन्दू विरोधी दलों से मुक्ति मिल सकेगी, मेरा विश्वास है कि अन्य सभी दलों के हिन्दू उसमें एकजुटता के साथ सम्मिलित हो जाएंगे।
बेताल का यह समाधान सुनकर वहां उपस्थित सभी आत्माओं ने अत्यन्त ही प्रसन्नतापूर्वक ॐकार और श्रीराम की जय-जय कार कर बेताल का अभिनन्दन किया, बेताल इस अभिनन्दन से अभिभूत होकर झूम-झूम कर नाचने लगा। उसको नाचते देख सभी आत्माएं, पशु-पक्षी और वनस्पति जगत भी नाचने-झुमने लगा।
परन्तु अतृप्त आत्माओं की वेदं और विकलता से दुखी तथा सनातनियों की घनघोर मूर्च्छा से चिन्तित होकर विक्रमादित्य ने महाकाल मन्दिर की ओर प्रस्थान कर दिया।
— डॉ. मनोहर भण्डारी