व्यंग्य – सीनाजोरी
“रामलाल, यू आर अंडर अरेस्ट। देखो, पुलिस ने तुम्हारे घर को चारों तरफ से घेर लिया है। तुम भागने की कोशिश मत करना, वरना मैं गोली मार दूँगा।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह दहाड़ते हुए बोले।
“सलाम साहब। लगता है आपको कुछ गलतफहमी हो गई है। आप मुझे यूँ गिरफ्तार नहीं कर सकते।” उसने अनुनय-विनय के स्वर में बोला।
“अच्छा, तो अब तुम मुझे बताओगे, कि मैं तुम्हें कैसे गिरफ्तार करूँ ?” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह फिर से गरजे।
“देखिए साहब, मैंने कहा न कि आप मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते ?” वह शांत भाव से बोला।
“क्यों ? क्यों गिरफ्तार नहीं कर सकते ? गिरफ्तारी वारंट है हमारे पास। सबूत भी। जिस घर में तुमने चोरी और दो-दो मर्डर की है, वहाँ की सी.सी. टी.वी. कैमरा की रिकार्डिंग में तुम स्पष्ट रूप से दिख रहे हो। फिंगर प्रिंट भी मैच कर रहा है।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह अपने चिर परिचित अंदाज में बोले।
“मैं नहीं मानता ये सब फालतू की बातों को। आप लोग बेवजह मेरे ही पीछे क्यों पड़े हैं।” उसका स्वर थोड़ा बदला सा लगा।
“बेवजह ? देखो, हम अभी मजाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हैं। पहले ही कहे देते हैं।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह बोले।
“तो मैं कौन-सा मजाक के मूड में हूँ इंस्पेक्टर साहेब। आप लोग काहे मेरे गले पड़ रहे हैं। जाइए, अपने रास्ते। अपना काम धंधा देखिए और प्लीज, मुझे बख्श दीजिए।” वह निर्भीक स्वर में बोला।
“ऐ, ज्यादा साड़े नइ बनने का। चुपचाप चलता है हमारे साथ या लगाऊ दो डंडा पिछवाड़े में।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह धमकाते हुए बोले।
“देखिए साहब, आप मुझे मेरे ही घर में यूँ जलील नहीं कर सकते। आप मेरे घर में हैं, इसलिए लिहाज कर रहा हूँ, वरना… ” वह खीझते हुए बोला।
“वरना क्या बे…. क्या उखाड़ लेगा तू…?” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह उसकी कालर पकड़ कर धमकाते हुए बोले।
“देखो इंस्पेक्टर साहब, अब बहुत हो गया आप लोगों का नाटक। मैंने आपकी बहुत-सी बदतमीजियां सह ली। यहाँ हमें मेरे घरवाले ही नहीं, आते-जाते लोग भी देख रहे हैं।” इस बार वह नाराजगी भरे स्वर में बोला।
“वही तो, संभल जाओ और चुपचाप चलो यहाँ से, ठीक वैसे, जैसे कि हर बार चलते हो।” इंस्पेक्टर बोले।
“हर बार, क्या मतलब है आपका ?” उसने पूछा।
“अबे साले, अभी पिछले महीने ही तुम्हें मैं यहीं से गिरफ़्तार करके थाने ले गया था । भूल गया सब कुछ इतनी जल्दी ।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह बोले।
“देखो साहब, इन सब पुरानी बातों को याद करने का कोई लाभ नहीं।” उसने सपाट स्वर में कहा।
“क्या मतलब है तुम्हारा ?” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह ने आश्चर्य से पूछा।
“छोडिये साहब, आप नहीं समझेंगे ये सब। फिर भी मैं आपसे एक बात जानना चाहता हूँ कि क्या आप लोगों के पास मेरा गिरफ्तारी वारंट है ?” उसने पूछा।
“हाँ…हाँ, क्यों नहीं। हम पुलिस वाले कभी कोई कच्चा काम नहीं करते हैं। ये देखो तुम्हारे नाम का गिरफ्तारी वारंट।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह ने गिरफ्तारी वारंट दिखाते हुए कहा।
“पर ये तो किसी रामलाल के नाम पर है, जबकि मैं रामलाल नहीं कन्हैया लाल हूँ। रामलाल के नाम की ऑर्डर पर आप कन्हैया लाल को गिरफ्तार नहीं कर सकते।” वह बोला।
“क्या मतलब है तुम्हारा ? तुम रामलाल से कन्हैयालाल कैसे हो सकते हो ? पिछले तीन साल में मैं तुम्हें सात बार गिरफ्तार कर चुका हूँ और अब कह रहे हो कि तुम रामलाल नहीं कन्हैयालाल हो।” इंस्पेक्टर झपट्टा सिंह ने आश्चर्य से पूछा।
“मैं सही कह रहा हूँ साहब। ये देखिये मेरा सर्टिफिकेट, अब मेरा नाम रामलाल नहीं कन्हैयालाल है और मैंने सारे बुरे काम छोड़ दिए हैं। अब मैं भी आप लोगों की तरह शराफत की जिन्दगी जीना चाहता हूँ। जाइए, आप अपना काम कीजिए और मुझे शराफत की जिन्दगी जीने दीजिए।” उसने बताया।
अब पुलिस उलटे पाँव लौटने लगी।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़