स्ट्रीट फूड
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पूरे टेस्ट रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने कहा, “जैसा कि मैंने पहले ही आशंका जताई थी कि इन्हें पीलिया है, वह इन टेस्ट रिपोर्ट्स से कंफर्म हो गया।”
“लेकिन डॉक्टर साहब, मैं हैरान हूँ कि इसे पीलिया कैसे हो गया। यह तो गंदे पानी के उपयोग से होता है न ?”
“जी हाँ, एकदम सही कह रहे हैं आप ?”
“तभी तो…., एक बार फिर से देखिए रिपोर्ट। कहीं किसी दूसरे की रिपोर्ट तो नहीं आ गई है ये ? हम तो ब्राण्डेड वाटर प्यूरीफायर का पानी यूज करते हैं। ऊपर से खुद का पर्सनल बोर। म्यूनिसिपलिटी का झंझट नहीं। फिर…।”
“अच्छा, ये बताइए क्या कभी-कभी बाहर खाने जाते हैं ?”
“जी, अक्सर जाते हैं, पर शायद ही कभी थ्री-स्टार होटल से कम में गए हों।”
“गुपचुप-चाट वगैरह….?” डॉक्टर ने आशंका जताई।
इस बार मिसेज वर्मा बोली, “जी, वो क्या है कि हमारी कॉलोनी के ठीक सामने एक खोमचे वाला अक्सर गुपचुप-चाट का ठेला लगाता है। बच्चे की जिद पर अक्सर मैं पैसे दे देती थी…”
“बस, अब साफ हो गया कि पीलिया कैसे हो गया। मैं दवाई लिख रहा हूँ। आप इसे निर्देशानुसार खिलाइए। और हाँ, ऐसे खुले में बिकने वाले गुपचुप-चाट से परहेज रखिए।”
“जी, ठीक है।” उन्होंने कहा।
जरा-सी लापरवाही बच्चों के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है, उसका आंदाजा उन्हें हो गया था।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़