गजल
मर्जी न हो खुदा की तो कुछ यहां नहीं मिलता
उम्मीद जिसकी हो जहां वो वहां नहीं मिलता।
मिलते हैं लोग अक्सर बन बन के अजनबी
ग़म ए जिंदगी में उनका निशां नहीं मिलता।
दो चार पल की बात मुलाक़ात ठीक है
जो साथ चले बस वो हमनवां नहीं मिलता।
जो आंखों से कहे धड़कन से सुन सके
इश्क में कोई ऐसा बेजुबां नहीं मिलता।
दिल लगी दिल की लगी में फर्क है हुजूर
दिल पे दिल लुटा दे वो महरबां नहीं मिलता।
अपनी उम्मीदों को जरा बांधिए ‘जानिब,
फकत बांहें उठाने से आसमां नहीं मिलता।
— पावनी जानिब