कविता

संस्कार

जिस इंसान के पास होते हैं संस्कार,
उनके जीवन में आते हैं शिक्षा से शिष्टाचार।
बिन संस्कार की शिक्षा होती है बेकार,
नहीं तो जन्म लेती है दैत्य और दानव विचार।
अफसोस है, आज शिक्षा हो गई है व्यापार,
तो कहाँ से आएगी बच्चों में संस्कार।
माना कि आधुनिक शिक्षा भी है जरूरी,
पर संस्कारों की शिक्षा से नहीं होनी चाहिए दूरी।
घर-परिवार और समाज की बगीचा तभी होगा गुलजार,
जब बहेगी पवित्र संस्कार और शिक्षा की धारा की ब्यार।
हमें उन शिक्षा का करना होगा बहिष्कार,
जिसमें माता-पिता और गुरूओं का होता है तिरस्कार।
सच्ची शिक्षा से आती है हमारे व्यक्तित्व में निखार,
जिससे जीवन में पनपते हैं सभ्यता, संस्कृति और सही संस्कार।
— मृदुल शरण