कहानी

चौकीदार

कल मैं अपनी पुरानी वाली सोसाइटी में गया, जिसमें पहले मैं रहता था। मैं जब भी वहाँ पर जाता हूँ, तब मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं अधिक-से-अधिक लोगों से मिलँू। वहाँ पहुँचते ही पहले मैं सोसायटी के गार्ड से मिला और उससे पूछा कि- ‘‘और क्या हाल है भाई! सोसायटी में सब लोग कुशल तो है ना?’’
उसी समय मोटरसाइकिल पर एक व्यक्ति हमारे पास आया और उसने झुककर बड़ी विनम्रता से मुझे प्रणाम किया और कहा- “अरे! संदीप भैया आप यहाँ? प्रणाम।”
मैंने उसे पहचानने की कोशिश की। बहुत जाना-पहचाना सा लग रहा था वो, पर उसका नाम उस समय मुझे याद नहीं आ रहा था। तब उसी ने कहा- क्या भैया! आपने मुझे नहीं पहचाना? मैं रामू हूँ। सी-ब्लॉक वाले मेहता साहब का नौकर।
मैंने उसे पहचान लिया अरे, यह तो रामू है। मेरे बगल वाले ब्लॉक में मेहता साहब के यहाँ काम करता था। मेहता साहब का तो स्वर्गवास बहुत पहले ही हो गया। तब से उनकी पत्नी उस घर में अपने नौकर रामू के साथ रहती है। उनके एक ही बेटा था रमेश। वो भी अमेरिका में रहता था और वहीं उसने एक घर बना लिया था और अपने परिवार के साथ रहता था। मैंने उससे पूछा- “अरे रामू! तुम? आंटी कैसी हैं?”
रामू हँसते हुए बोला-“आंटी तो गई।”
“गई? कहाँ गई? अपने बेटे के पास अमेरिका?, यह ठीक ही किया उन्होंने। यहाँ इस उम्र में अकेले रहने से कोई मतलब नहीं था?”
अब रामू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने अपनी हंसी को रोकते हुए कहा- “यह बात नहीं है भैया! आंटी जी का तो स्वर्गवास हो गया।”
‘‘ओह! कब?”-मैंने पूछा।
उसने कहा-“दो महीने हो गए।”
“क्या हुआ था आंटीजी को?”-मैंने पूछा।
“कुछ नहीं भैया। अकेलापन और बुढ़ापा ही उनकी बीमारी थी। इसी कारण वह पिछले कई महीनों से बीमार भी चल रही थी। उनका बेटा भी कहीं महीनों से उनसे मिलने नहीं आया। वे हमेशा उसे याद करती रहती थीं।
“हाँ, वो तो मुझे भी पता है। तुमने भी उनकी बहुत सेवा की। अब जब वो चली गई हैं तो तुम अभी क्या कर रहे हो?”
अब रामू फिर हँंसा- ‘‘मैं क्या करुँगा भैया? पहले आंटी की सेवा करता था अब जब वो इस दुनिया में नहीं है तो उनके घर की देखभाल करता हूँ। पहले अकेला था अब गांव से फैमिली को यहाँ ले आया हूँ। पत्नी और बच्चें भी अब यहीं रहते हैं।”
“यहीं मतलब उसी मकान में?” मैंने पूछा।
“जी भैया! आंटीजी के अन्तिम संस्कार के लिए उनका बेटा अपने पूरे परिवार सहित विदेश से आया और कुछ दिनों तक यहाँ रूकने के पश्चात् जब वह वापस जाने की तैयारी कर रहे थे तब उन्होंने मुझसे कहा कि रामू! इस घर की देखभाल अब तुम्हीं को करनी है। मैं हर महीने वहाँ से तुम्हें पैसे भिजवाता रहूँगा।’’
अब आप ही बतायें कि चार कमरे के इतने बड़े मकान की देखभाल मैं अकेला कैसे कर सकता था? इसलिए मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को भी गाँव से यहीं बुलवा लिया। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मेरे बच्चों को यहीं के स्कूल में दाखिला भी मिल गया। अब इस घर में मैं आराम से रह कर इसकी अच्छे से देखभाल कर रहा हूँ। रमेश भैया सारा सामान भी अपने साथ नहीं ले गये। वे कहते थे कि इस समान को अमेरिका ले जाने में कोई फायदा नहीं। अब इस घर की देखभाल के साथ-साथ कुछ काम मैं बाहर भी कर लेता हँू, जिससे दो पैसों की बचत भी हो जाती है। मेरी पत्नी भी घर को अच्छी तरह से सम्भाल लेती है। बच्चे भी यहाँ बहुत खुश हैं।
मैंने रामू से फिर पूछा कि- ‘‘तुमने रमेश को बता ही दिया होगा कि तुम्हारा परिवार भी इस घर में तुम्हारें साथ ही रह रहा है?’’
“इसमें उनको बताने वाली कौनसी बात है भैया? वे कौनसे अब लौटकर यहाँ आने वाले हैं? और मैं भी कब तक अकेला इस मकान की देखभाल करता? जब वे आएंगे तब देखा जायेगा। परन्तु जब उनकी माँ जिन्दा थीं तब तो आए नहीं, उनके जाने के बाद वे अब क्या आयेंगे? उन्हें यदि इस मकान की चिंता है, तो उसे मैं कहीं साथ में लेकर तो नहीं जा रहा हूँ। मैं तो सिर्फ देखभाल ही तो कर रहा हँू।” -रामू ने हँसते हुए कहा।
मैं उसे देखकर हैरान था और सोचने लगा कि जो रामू पहले साइकिल से चलता था। जब आंटी थीं तब उनकी देखभाल करता था। पर अब जब आंटी चली गई तो उस शानदार मकान में वह आराम से रह रहा है। मेहता साहब के बेटे ने वापस अमेरिका जाते समय मकान के देखभाल की जिम्मेदारी रामू को यह सोच कर दी कि वह उसमें रहेगा तो उनके मकान की देखभाल तो होती रहेगी।
मैंने रामू से फिर हाथ मिलाया। मैं उसके रहन-सहन को देखकर यह तो समझ रहा था कि अब वो नौकर नहीं रहा, इस मकान का मालिक हो गया है। मैंने हँसते-हँसते उससे कहा-भाई! किसी तजुर्बाकार व्यक्ति ने यह बात बिल्कुल सही कही है कि-‘‘मूर्ख आदमी मकान बनाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें आराम से रहता है।’’
रामू ने धीरे से कहा-“भैया, यह सब तो किस्मत की बात है।”
अंत में मैं सभी पुराने जान-पहचान वालों से मिलकर वहाँ से अपने घर की ओर चल पड़ा। यह सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है। साथ ही मेरे मन-ही-मन में यह चिन्तन भी चल रहा था कि अपने साथ मकान लेकर कौन जाता है? हम सब उसकी देखभाल या चौकीदारी ही तो करते हैं।

— राजीव नेपालिया (माथुर)

राजीव नेपालिया

401, ‘बंशी निकुंज’, महावीरपुरम् सिटी, चौपासनी जागीर, चौपासनी फनवर्ल्ड के पीछे, जोधपुर-342008 (राज.), मोबाइल: 98280-18003