दोहा गीतिका
चाल चलन चेहरा करनी कथनी किरदार
बदला वक्त बदल देता है क्या क्या यार
जितनी बार मिलाया हाथ भरोसे से
हमने अक्सर धोखा खाया उतनी बार
लाल गलीचे पाए मिथ्या ने पथ में
सच के हिस्से आए अक्सर पत्थर ख़ार
जिनके दम पर महल बना आज़ादी का
बोल रहे हैं लोग उन्हीं को अब ग़द्दार
जाने कब ज़हनो से कटुता जाएगी
जाने कब टूटेगी नफ़रत की दीवार
लोग कभी जिनके सज़दे में झुकते थे
तन्हा लावारिस है उनकी आज मज़ार
झूठ फ़रेब कपट छल की पतवारों से
कौन लगा पाया जीवन की नैया पार
— सतीश बंसल