कविता

प्रेम की स्याही

दिल से जब दिल मिल जाते हैं

बगिया में जैसे हज़ारों फूल खिल जाते हैं

वीरानों में भी बहार आ जाती है जैसे

प्रेम के सामने तो पर्बत भी हिल जाते हैं

प्रेम की स्याही कभी फीकी नहीं पड़ती

समय के साथ रंग और गाढ़ा हो जाता है

बाहरी दिखावा नहीं होता प्रेम

यह तो सभी पर नशा बन कर छा जाता है

प्रेम तो ज़िन्दगी भर साथ निभाता है

नफरत त्याग कर सबको गले लगाता है

यह वह पक्का धागा है रिश्तों का

जिसमें बंध कर प्राणी खिंचा चला आता है

समस्त सृष्टि के कण कण में प्रेम ही तो है समाया

प्रेम ही ने सबको मिलजुल कर जीना सिखाया

प्रेम ही है इस जगत का आधार

प्रेम ही ने खूबसूरत रिश्तों को है बनाया

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र