कविता

क्या तुम्हें पता है?

जिंदगी कब कब घटती है?

अरे भई परेशान होने की जरूरत नहीं

जिंदगी रोज घटती है,

लेकिन एक पिता की जिंदगी

के घटने के और भी कई कारण हैं,

जिसका औलादों के पास ही निवारण है,

जरूरी नहीं कि पापा

कर पाये संतानों खातिर इकट्ठा कुछ धन,

क्या पता है औलादों को कि

जलना शुरू हो चुका है पापा का तन,

वो तन जलाता है परिवार के लिए,

बच्चों की शिक्षा के लिए,

जीवन की परीक्षा के लिए,

पर जब उतर आये बच्चे मनमानी पर,

सबसे बड़े नादानी पर,

जब वे दिखाये जबरन का हौसला,

कर ले अपरिपक्व फैसला,

तब घटने लगता है उम्र पिता की,

शायद वो सोच लेता

वक़्त अपने संभावित चिता की,

तब बच्चों में नशा होता है

बाप के होते सुनिश्चित सुरक्षा होता है,

पर बाप भी टूट सकता है,

उनके सपनों की दुनिया लूट सकता है,

पिता सिर्फ एक अहसास है,

सुरक्षित भविष्य की शायद आस है,

अच्छे पिता की मजबूरी नहीं बताऊंगा,

पहले महसूस करो

ये जुमला है आपको जताउंगा,

जिंदगी सही पटरी पर है तो आस है,

पर पिता मनमानी नहीं एक विश्वास है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554