वतन
वतन ऐ वतन तुझ पे ये जाँ लुटा दें
तेरी आन पर अपनी हस्ती मिटा दें
मेरे हौसले से हिले विश्व सारा
लगे आग जिससे दिया वो बुझा दें
ये भारत भरत का वतन है समझ ले।
गिने शेर के दाँत धूली चटा दें
हिमाकत न करना मिटाने की इसको
ये धरती शिवा की जो तारे गिना दें
तू पैदा हुआ इस हँसी सरज़मी पर
वतन के लिये ज़िन्दगानी लुटा दें
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’