गीतिका/ग़ज़ल

वतन

वतन ऐ वतन तुझ पे ये जाँ लुटा दें
तेरी आन पर अपनी हस्ती मिटा दें

मेरे हौसले से हिले विश्व सारा
लगे आग जिससे दिया वो बुझा दें

ये भारत भरत का वतन है समझ ले।
गिने शेर के दाँत धूली चटा दें

हिमाकत न करना मिटाने की इसको
ये धरती शिवा की जो तारे गिना दें

तू पैदा हुआ इस हँसी सरज़मी पर
वतन के लिये ज़िन्दगानी लुटा दें

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016