ग़जल
तेरे चेहरे पर कोई नजर गड़ाये बैठा है,
पता नहीं है कोई हमदर्द या लुटेरा है।
नजरें तो कली पर वैसे ही उठ जाती है,
सच हुस्न पर तो नजरों का ही बसेरा है ।
यहाँ तो लगता है इल्जाम दूसरे पर ही,
कौन खुद को टटोलता है कि लुटेरा है।
लुट जाने का गम पता नहीं लुटेरों को ,
लुटने वालों के दुनियां में भी अंधेरा है ।
धन सत्ता कि ललक में हीं जो भटकते हैं,
‘शिव’ दुनियां में वो ही सबसे बड़ा लुटेरा है।
— शिवनन्दन सिंह