दीवार
जब पैसे नहीं थे
एक कमरे में हम सब सोते थे आस पास
कोई एक जब जग रहा होता था
देर रात तक
और आँख खुल जाती थी
दूसरे की
उठ के पूछता था
क्या बात है
नींद नहीं आ रही
हाल चाल पूछ लेता था
एक दूसरे का
जब से हम अमीर हुए
दीवारे बीच में आ गयीं
साँसे जिंदगी की खत्म हो गयीं
आधी रात को
दीवारों के पार खबर तक न पहुंची
सुबह जब कोई आवाज न आई
तो देखा
जाने वाला जा चुका न जाने कब
दीवार न होती तो उठ जाते
उसकी आहट पर
पर आड़े आ गयी यह दीवार