हास्य व्यंग्य

भारत रत्न मिल रहा है

का हो भाई साहब ! भारत रत्न मिल रहा है सुना हूं। चुनाव का बिगुल बजा है का ? रेवड़ी की तरह बंट रहा है। कुछ इधर भी मिल जाता तो हम अमर हो जाते। हो जाता कोई जुगाड तो बताओ यार।

कुछ लोग कह रहे हैं कि बड़का-बड़का लोग पा रहे हैं। जिनका सरकार से कुछ गहरा नाता है। कौनऊ सोर्स की जरूरत नहीं बा। सब ओके बा। जब बड़का-बड़का लोगन के मिल रहा है तो हमार बड़का बाबू हैं। का कमी है। प्रधान रहे। दस हजार लेकर कालोनी पास कर देते थे। 

बड़का बाबू कहते थे सब बीस हजार ले रहे हैं। हम दस हजार गरीबो का बचा रहे हैं। वो गरीबों का दुख दर्द समझते थे। गरीबों के मसीहा थे। इत्ता बड़ा मसीहा। मिल जाता भारत रत्न तो काम हो जाता।

हम चुपके से आवेदन कर दिए तो गांव में फुसुर-फुसुर होने लगी। कुछ लोग कहे कि रामलाल तो पांच हजार में कालोनी पास कर देते थे। ई तो अन्याय है। सोहना तो बिना लिए पास कर देता था पर सोहना की आवाज उठाने वाला कोई नहीं था।

एक दस हजार में कालोनी पास करता था और एक पांच हजार में और सोहना तो कुछ भी नहीं लेता था। सरकार ने कहा कि दोनो ने गरीबों के हित के लिए काम किया है।

दो लोगों के नामों की घोषणा भारत रत्न के लिए कर दी गई जबकि सोहना प्रबल दावेदार था। असली गरीबों का मसीहा तो सोहना था। सोहना की आत्मा ताक रही है भारत रत्न के लिए लेकिन सरकार नही ताक रही है। धत्त तेरी लोकतंत्र की…..

— जयचन्द प्रजापति ’जय’

जयचन्द प्रजापति

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