ग़ज़ल
लिखो आज मन मेरे कोई ग़ज़ल तुम।
न करना कभी मेरी आंखें सजल तुम।।
उन्हें याद करना मिले जो सफ़र में।
न दौलत न शोहरत न उनके महल तुम।
जो करके सितम बन गए हैं सितमगर।
पलट कर न करना कभी फिर दख़ल तुम
जुदा हो गए हमसे जो भी मुसाफिर।
कभी उनके खातिर न जाना मचल तुम।।
जो मिल जाए तुम्हें सफर में दोबारा।
भटक फिर न जाना न करना पहल तुम।।
मुहब्बत में जो दर्द देकर चलें हैं।
मिलों उनसे ख्वाबों में भी कुछ सॅंभल तुम।।
छुपा करके रखना मुहब्बत को अपनी।
न ख्वाहिश को करना कभी भी प्रबल तुम।।
— प्रीती श्री वास्तव