हॉस्पिटल मैनेजमेंट
हॉस्पिटल मैनेजमेंट
“सर, जब आप क्लास में हमें पढ़ाया करते थे, तब आपका एक दूसरा ही रूप देखा करता था, यहाँ हॉस्पिटल में आप एकदम दूसरे व्यक्तित्व के स्वामी लगते हैं।” जूनियर डॉक्टर ने अपने सीनियर डॉक्टर से कहा।
“बेटा, कॉलेज में मैं एक टीचर के रूप में अपनी सेवाएँ देता हूँ और यहाँ एक प्राइवेट हॉस्पिटल में डॉक्टर होने के साथ-साथ मैनेजर भी हूँ।” सीनियर डॉक्टर ने कहा।
“जी सर, वही देख कर मन में जिज्ञासा हुई, तो आपसे पूछ लिया।” जूनियर डॉक्टर ने कहा।
“यही सब तुम्हें भी सीखनी है डॉक्टर। मेडिकल कॉलेज में बहुत सीख ली थ्योरीटिकल नॉलेज। अब प्रैक्टिकल नॉलेज भी सीखो। वही जीवनभर काम आएगा।” उसकी पीठ थपथपाते हुए सीनियर डॉक्टर ने कहा।
“जी सर। आप जैसा आदेश करें।” जूनियर ने कहा।
“देखो पेसेंट या उसके फैमिली मेंबर्स से हमेशा इलाज का खर्च बताते समय टेस्ट, दवाई और प्राईवेट रूम चार्ज की बात एक साथ जोड़कर नहीं, अलग-अलग करके बताया करो, ताकि उन्हें बहुत अधिक न लगे। ऑपरेशन की पेमेंट भी एकमुश्त नहीं, धीरे-धीरे किश्तों में लो।” सीनियर डॉक्टर ने समझाया।
“यस सर।” जूनियर डॉक्टर ने कहा।
“ऑपरेशन के थोड़ी देर पहले ही जरूरी-गैरजरूरी दवाइयों की लंबी-चौड़ी लिस्ट देकर ढेर सारी दवाइयाँ मंगवा लो। फिर उसमें से 10-15% प्रतिशत दवाई ‘बच गई हैं, इन्हें मेडिकल स्टोर में लौटा दो, पैसे रिफंड हो जाएँगे’ कहकर उनका दिल जीत लो।” आज सीनियर डॉक्टर मानो अपने सुदीर्घ जीवनानुभव का निचोड़ सामने रखने की ठान लिए थे।
“वाह, क्या मैनेजमेंट ट्रीक है सर।” जूनियर डॉक्टर सीनियर डॉक्टर की प्रतिभा का कायल हो गया था।
“और हाँ, पेसेंट को डिस्चार्ज तभी करना, जब हॉस्पिटल में कोई अगला पेसेंट आ जाए। समय-समय पर हॉस्पिटल मैनेजमेंट के मेडिकल स्टोर की स्टाक का भी चैक करते रहना।” सीनियर डॉक्टर समझाते हुए बोले।
“वो क्यों सर ?” उसने जिज्ञासावश पूछ लिया।
“वो इसलिए कि जिन दवाओं की एक्स्पायरी डेट खत्म होने की कगार पर हों, उनका अधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित हो सके, ताकि उन्हें फेंकना न पड़े। जितनी तुम मैनेजमेंट की केयर करोगे, उतनी ही मैनेजमेंट भी तुम्हारी केयर करेगी। समझ गए मेरी बात।” सीनियर डॉक्टर बोले।
“यस सर।” जूनियर बोला और अपने काम पर लग गया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़