कविता

सच कह दे

आंखों में आंखें मिलाकर सच कह दे,

कहने का हौसला न हो तो बेहिचक कह दे,

सच ही है प्रार्थना, नमाज, प्रे,अरदास,

झूठ की फतेह तय है तो कायनात बदल दे,

फ़रेब की मोटी दीवार भी कुछ नहीं,

अवाम सामने आ थोड़ा सा मचल दे,

वक़्त पाबंद है अपने हर नियम हुनर का,

कब,कहां,किस जगह कोई लावा निकल दे,

नैतिकता रची बसी हो खूं में किसी का,

टप टप टपकेगा सच हर वक़्त फतेह दे,

आंखों में आंखें मिलाकर सच कह दे।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554