गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी सुख, दुख, अँधेरे, रोशनी में
हज़ारों मोड़ आए ज़िंदगी में

नहीं था जिस्म का ही मामला कुल
बहुत कुछ इल्म भी था आशिक़ी में

कभी थे हमसफ़र, हमदर्द, हमदम
कभी थे हमनवा हम दोस्ती में

रहे ग़म में न पाने के जहाँ हम
वहीं चाहत, उमीदों की ख़ुशी में

हवा ही डोलती पत्ते खड़कते
परिंदे ही चहकते ख़ामुशी में

बदन दिन में, निशा में आत्माएँ
चमन-भर घूमती हैं चाँदनी में

निकालेंगे, लिटा देंगे चिता पर
अगर हम डूब जाते हैं नदी में

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137