रबी की कशिश
दूध भरी ये बालियां,
उभरती लहरों सी।
खिलती चहुं ओर कलियां,
बसंत की महक सी।।
गा रही वनों कोयले,
यौवन मधुर धुन में।
नागिन सी बल खा रही,
प्रेम रस नयनों में।।
वसुधा की सहजता से,
गंदुम लहरा उठे।
भर परिधान पराग से,
तगर आकर्षित उठे ।।
उमंगें मन साज़ भरी,
प्रेम रसिक रसपान।
चारों ओर सरसों भरी,
मधु ओढ़े परिधान।।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”