राजनीति

मुक्त होगी भोजशाला

आखिरकार वागदेवी माँ सरस्वती की प्रतीक्षा का अंत होने को है। माननीय उच्च न्यायालय इंदौर खण्ड पीठ में हिन्दू फ्रंट द्वारा लगाए गए एक वाद में न्यायालय ने धार स्थित वागदेवी माँ सरस्वती के मंदिर व विद्यालय जिस पर वर्तमान में अनैतिक रूप से इस्लामिक कब्जा है, इस परिसर के एएसआई (ASI) सर्वेक्षण का आदेश दिया है। सामाजिक संगठन ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ ने ये याचिका दाखिल की है। कोर्ट ने ASI को पांच सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी का गठन करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट आदेश मिलने के बाद 6 हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि एएसआई भोजशाला की ऐतिहासिकता का वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वेक्षण करके शीघ्र ही इसकी रिपोर्ट सौपें। जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस देव नारायण मिश्र की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एक्सपर्ट कमेटी दोनों पक्षकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में ग्राउंड पेनिट्रेशन, रडार सिस्टम सहित सभी उपलब्ध वैज्ञानिक तरीकों के साथ परिसर के 50 मीटर के दायरे में समुचित स्थानों पर जरूरत पड़ने पर खुदाई करा कर सर्वेक्षण करे। जिससे कि परिसर के ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, तार्किक स्तर पर स्पष्टीकरण मिल सके। इस सर्वेक्षण के तस्वीरें और वीडियो बनाए जाएं, ताकि उन्हें साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। साथ ही 29 अप्रैल के पहले कोर्ट को रिपोर्ट दी जाए। 29 अप्रैल को कोर्ट में अगली सुनवाई है। ताकि इस वाद में आगे की प्रक्रिया पर विचार किया जा सके। 

हिन्दू फ्रंट ने करीब 1,000 साल पुराने भोजशाला परिसर की वैज्ञानिक जांच अथवा सर्वेक्षण अथवा खुदाई या ‘ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार’ (जीपीआर) सर्वेक्षण समयबद्ध तरीके से करने की मांग की थी। भोजशाला के सरस्वती मंदिर होने के अपने दावे के समर्थन में हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट के सामने इस परिसर की रंगीन तस्वीरें भी पेश की हैं। वर्तमान में भोजशाला को भोजशाला मंदिर सह कमाल मौला मस्जिद दोनों ही नाम से उल्लेख किया जाता है, न्यायालय ने परिसर की पूरी साइट के संबंध में निदेशक, ASI को निम्नलिखित निर्देश जारी किए जाते हैं :

विवादित भोजशाला मंदिर सह कमाल मौला मस्जिद परिसर के साथ-साथ आसपास के परिधीय रिंग क्षेत्र के पूरे 50 मीटर क्षेत्र के जीपीआर-जीपीएस सर्वेक्षण के नवीनतम तरीकों, तकनीकों और तरीकों को अपनाने के माध्यम से पूर्ण वैज्ञानिक जांच, सर्वेक्षण और उत्खनन हो, परिसर की सीमा से वृत्ताकार परिधि का निर्माण किया जाए। मैदान, जमीन के नीचे और ऊपर दोनों जगह स्थायी, चल और अचल संरचनाएं, जो पूरे परिसर की दीवारों, स्तंभों, फर्शों, सतहों, ऊपरी शीर्ष, गर्भगृह का निर्माण करती हैं, ऊपर और नीचे विभिन्न संरचनाओं की उम्र, जीवन का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति को अपनाकर एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए।

ASI के महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में ASI के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार की गई एक उचित दस्तावेज वाली व्यापक रिपोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। उक्त विशेषज्ञ समिति में दोनों प्रतिस्पर्धी समुदायों के अधिकारियों (यदि उक्त पद और रैंक उपलब्ध हो) का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास किया जाना चाहिए. वादी और प्रतिवादी के दो (2) नामांकित प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संपूर्ण सर्वेक्षण कार्यवाही की तस्वीरें लेना और वीडियोग्राफी हो। पूरे परिसर के बंद/सील कमरों, हॉलों को खोला जाए और प्रत्येक कलाकृति, मूर्ति, देवता या किसी भी संरचना की पूरी सूची तैयार हो और संबंधित तस्वीरों के साथ इसे जमा किया जाए. ऐसी कलाकृतियों, मूर्तियों, संरचनाओं को वैज्ञानिक जांच, कार्बन डेटिंग और सर्वेक्षण के समान अभ्यास के अधीन किया जाना चाहिए। इसे  न्यायालय के समक्ष दायर की जाने वाली रिपोर्ट में अलग से शामिल किया जाना चाहिए।

कोई अन्य अध्ययन, जांच, जो ASI की उक्त पांच (5) सदस्य समिति को आवश्यक लगता है, वास्तविक प्रकृति का पता लगाने की दिशा में, पूरे परिसर की मूल प्रकृति को नष्ट, विरूपित, नष्ट किए बिना किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं द्वारा दावा की गई राहत या विवादित परिसर में पूजा और अनुष्ठान करने के अधिकार से संबंधित अन्य सभी मुद्दों और प्रस्तुतियों पर विशेषज्ञ समिति से उपरोक्त रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही विचार और निर्धारण किया जाएगा।

आदेश के मुख्य बिन्दू 

१. भोजशाला के पूरे परिसर का सर्वे और उत्खनन वैज्ञानिक पद्धति से होगा 

२. ⁠उत्खनन और सर्वे  GPS GPR तकनीक के साथ कार्बन डेटिंग तथा अन्य नई तकनीक से करने का आदेश।

३. ⁠भोजशाला परिसर की बाउंड्रीवाल से  50 मीटर की दूरी तक सर्वे किया जावेगा।

४. ⁠ ASI के वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी की निगरानी में सर्वे होगा 

५. ⁠उत्खनन एवं सर्वे की वीडियोग्राफी कराई जावेगी।

६. ⁠ परिसर के सभी बंद पड़े कमरों, खुले परिसर तथा सभी खम्बों का विस्तार से सर्वे होगा 

७. ⁠उत्खनन सर्वे की रिपोर्ट 2 महीने में प्रस्तुत करने के आदेश

यह पिछले कई दशकों के अविराम संघर्ष का परिणाम है भोजशाला को लेकर पिछले कई दशकों से मध्यप्रदेश का यह क्षेत्र हाई वोल्टेज पर रहा। यहां कोर्ट के निर्णय से कई बार स्थितियां परिवर्तित होती रही। पूर्व की दिग्विजय सरकार  व उससे पहले के समय में यह परिसर अर्थात भोजशाला हिन्दू समाज के लिए पूर्णतः प्रतिबंधित थी। परन्तु मुस्लिम समाज को नमाज के लिए जाने की अनुमति थी, इसी अवसर का लाभ उठाकर भोजशाला के परिसर में वर्णित स्तंभ की रचनाओं, शिला लेखों, मूर्तियों, यज्ञ कुंड, आलेख, चित्र, संरचनाओं को खंडित करने, मिटाने के कुत्सिक प्रयास किए गए। भोजशाला के आस पास अनैतिक व अवैध रूप से पत्थरों को हरा रंग करके गाढ़ा गया, कई सीमेंट की मजार बनाकर उन्हें हरा पोता गया, स्थानीय हिन्दू समाज के विरोध के बाद भी तत्कालीन जिम्मेदार प्रशासन व अधिकारियों ने इस संबन्ध में कोई खास रुचि नही ली और यह अनैतिक कब्जा बढ़ता गया। हिन्दू समाज के दशकों के संघर्ष के बाद पूर्व कुछ वर्षों से हिन्दू समाज को मंगलवार दर्शन और पूजन का अधिकार मिला। जबकि शुक्रवार को नमाज कराने की योजना अब भी जारी रही। शरणार्थी के रूप में आये कमाल मौला के स्थल को षड्यंत्र पूर्वक भोजशाला के बाहर बनाया गया, उसे हर वर्ष बढ़ा आकर दिया गया। मुस्लिम हितों की सरकारों के चलते इस प्रक्रिया में कभी प्रशासन या अधिकारियों ने ठोस कदम नही उठाये । फिर भोजशाला मुक्ति आंदोलन ने पूरे धार मालवा को एकजुट करके जब सड़कों पर ला दिया तब सरकार व प्रशासन की नींद खुली। फिर भी इन आंदोलन एकत्रीकरण सभाओं में पुलिस के द्वारा कई बार हिन्दू समाज पर अत्याचार करवाये गए। कई बार लाठी डंडों से भोजशाला मुक्ति आंदोलन के कर्णधारों का सम्मान हुआ, परन्तु धार के स्थानीय समाज ने बहुत ही शक्ति धैर्य और साहस से इस आंदोलन को एक से दूसरी पीढ़ी तक जारी रखा। तब का हिन्दू समाज यदि कई बार संघर्ष ना करता,  तो यह अवैध इस्लामिक कब्जा बढ़ता ही रहता और आज समाज जागरूक नही होता। भोजशाला के दर्शन करने वाले सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी यह अनुभव हो जाएगा कि यह परिसर किसी समय में एक हिन्दू संस्थान रहा होगा। स्तंभों में उकेरे हुए मूर्ति व भगवानों के चित्र चीख चीख कर यह गवाही देते है कि भौजशाला हिन्दू समाज का पूजनीय स्थल है, परिसर के मध्य में स्थित बहुत बड़ा यज्ञ कुंड इसका साक्षात प्रमाण है कि राजा भोज के शासनकाल से ही यहां यज्ञ हवन होते, वेदों की ऋचाएं  गुंजा करती थी । परन्तु भोजशाला को अब तक अपने न्याय की प्रतीक्षा थी जिसका अंत होते दिखाई दे रहा है। माँ वागदेवी की प्रतिमा आज भी लंदन के संग्रहालय में कैद है, जिसे अंग्रेज अपने साथ ले गए थे। 

अब यह शुभ अवसर है माँ वागदेवी की प्रतिमा को ससम्मान धार लाकर भौजशाला में स्थापित करना चाहिए। 

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश