बचपन
जब कभी अकेले होता हूँ
अनायास पहुँच जाता हूँ
गुड्डा गुड़िया बाले दिनों में
खो जाता हूँ उन यादों में
मूंद कर आखें
मुस्कुराता हूँ
देख कर आँखों के आगे
गुजरते चलचित्र को
उन लम्हों को पकड़ने की कोशिश करता हूँ
जो गुजर चुके हैं अतीत में
यादें बन कर
लेकिन मैं जानता हूँ
अतीत को लाया नहीं जा सकता
जीना इसी वर्तमान में है.
— ब्रजेश गुप्ता