कविता

बचपन

जब कभी अकेले होता हूँ

अनायास पहुँच जाता हूँ

गुड्डा गुड़िया बाले दिनों में

खो जाता हूँ उन यादों में

मूंद कर आखें

मुस्कुराता हूँ

देख कर आँखों के आगे

गुजरते चलचित्र को

उन लम्हों को पकड़ने की कोशिश करता हूँ

जो गुजर चुके हैं अतीत में

यादें बन कर

लेकिन मैं जानता हूँ

अतीत को लाया नहीं जा सकता

जीना इसी वर्तमान में है.

— ब्रजेश गुप्ता

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020