कविता

एक पिता बनकर…

अभी-अभी
धरती पर कदम रखा
एक हाड़ मांस
जान प्राण का टुकड़ा
बालक को हाथों में लेकर
बड़ी दुलार से
बहुत ही प्यार से
हसरत भरी निगाहों से
पुचकारते हुए
खेलाते हुए…,

क्या सोच रहा होगा…?
एक पिता तनकर…!
एक पिता बनकर…!!

शायद…,
एक वारिस
एक संतान या
अपना ही जीवन का
एक प्रतिरूप…!
वह बालक
जो है ईश्वर का स्वरूप…!!

एक बार
सिर्फ एक बार
पूछने का मन है
लेकिन पूछ नहीं सकता

समझने के लिए तो
इतना ही
समझ लेना बेहतर है…,
एक जीवन
बिता देना ही बेहतर है…,,
एक पिता बनकर…!

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

सुदर्शन पार्क , मोती नगर , नई दिल्ली-110015 मो. नं.- +91 7982510985