कविता

कविता

वृद्धाश्रम में मात पिता, बेटे पर ही दोष क्यों लगते,
बाहर गये क्यों सास ससुर, बेटी को कुछ न कहते?
लड़के पिसते दो पाटों मे, घुट घुट कर जीवन जीते,
पत्नी की जो बात न माने, दहेज आरोप देखे लगते।
पत्नी की हाँ में हाँ तो, सब जोरू का गुलाम बताते,
माँ की बातें जो मानी तो, माँ के पल्लू बँधा कहते।
जीवन जीना मुश्किल लगता, नये दौर में बेटों का,
बेटी घर में रहे अकेली, दामाद बहुत अच्छा कहते।
शादी से पहले बेटों ने, कब माँ बाप को बाहर किया,
बिमार मात पिता का भी, जी भरकर सबने साथ दिया।
बहुओं के घर मे आते ही, क्यों काँटे उसमे ऊग आते,
नये दौर में बेटी ने कब, सास ससुर का साथ दिया?

— डॉ अ कीर्तिवर्द्धन