हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – खुदा और नाखून वाले गंजे

मेरे सामने जब भी कोई गंजा आदमी आता है मैं सब से पहले उसके नाखून चेक करता हूं। मेरे को आज तक ऐसा कोई गंजा आदमी नहीं मिला जिसकी उंगलियों में नाखून न हो। जब हर गंजे आदमी की उंगली में नाखून है तब यह भ्रामक प्रचार क्यों किया गया कि ख़ुदा गंजो को नाखून नहीं देता। गंजे अलग परेशान है वे रोज़ सुबह उठ कर सब से पहले अपने नाखून चेक करते है। दुआं मांगते है कि अल्लाह तू ने बाल तो ले ही लिया अब जल्द नाखून भी ले ले तो झंझट खत्म हो।

गंजो की पत्नियों को अलग टेंशन हैं खासकर वे पत्नियां जिन्हें ख़ुदा पर पूरा और पति पर ज़रा भी भरोसा नहीं है। ये पति को शक की नज़र से देखती है उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ये माजरा क्या है ? गंजो की पत्नियां इतना तो समझ गई हैं कि ये आदमी आता तो मेरी सभा में है लेकिन वोट दूसरी पार्टी को देता है। ये औरतें पति की जासूसी कर रही है पता लगा रही है कि वो कौन है जो इनके नाखून के लिये दुआ कर रही है और रख रही है नाखून की सलामती के लिये व्रत। बाल तो मेरे कारण झड़े है पर नाखून किस के कारण जमे है ? गंजे पति के नाखून लंबे बाल वाली पत्नी को चुभ रहे है, पति की उंगलियों को शक की निगाहों से देखा जा रहा है। कुछ पत्नियां तो आखिरकार फूट फूट कर रो पड़ी और पूछने लगी कि आप इन नाख़ुनों से किस की पीठ खुजा रहे है ? कुछ गब्बरनी ने तो खुल्लम खुल्ला कह दी है ठाकुर ये नाखून मुझे दे दे।

माना हमारी बस्ती अफ़वाहों की शौकीन बस्ती है, हमें जीने के लिये रोज़ एक नई पौष्टिक अफ़वाह की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन मेरे प्यारे अफ़वाहबाज़ गैस सिलेंडर के दाम कम हो जाने की अफ़वाह, बिजली के स्मार्ट मीटर की अफ़वाह, किसी के चरित्रहीन होने की जैसी चमकीली अफ़वाह के रहते ख़ुदा के नाम से अफ़वाह फैलाना ठीक नहीं है।

जिसने भी यह अफ़वाह फैलाई वह किसका विरोधी था ख़ुदा का या गंजो का यह जांच का मामला है।आखिर ऐसा झूठा प्रचार कर के उसे क्या मिला ? खुदा किस किस को समझता फिरे कि मेरे उपर लगा आरोप निराधार है। ख़ुदा भी समझ गया है कि यह मामले से बड़ी घोषणा, बात से बड़ा ऐलान है, वह साफ़ महसूस कर रहा है कि इस गीत में शब्द कम आर्केस्ट्रा ज़्यादा है लेकिन वह क्या करे बहुमत अफ़वाहबाज़ के पास है। मूर्खो की भीड़ में ख़ुदा अकेला पड़ गया है।

ज़मीन पर जो ख़ुदा के एजेंट है उन्हें तो कम से कम स्पष्टीकरण देना चाहिये कि यह ख़ुदा की पाँलिसी नहीं है कृपया शैतान के बहकावे में न आये। उन्हें घर घर जाकर लोगो को समझाना चाहिए कि ख़ुदा इतना भी निर्दयी नहीं है कि बाल भी ले ले और नाखून भी नहीं रहने दे क्योकि यह ज़मीन की अदालत नहीं है जहां जुर्म से बड़ी सज़ा दी जाये।

कभी मेरे को यह विचार भी आया कि जैसे कुछ लोग दावा करते है कि मैंने बहुत साहित्य पढ़ा है लेकिन उन्होंने भी संपूर्ण नहीं पढ़ा है उसी प्रकार मैंने भी बहुत से गंजे देखे है लेकिन पृथ्वी के संपूर्ण गंजो को तो नहीं देखा हूं। हो सकता है मेरे देश के गंजो पर यह नीति लागू न हो लेकिन अन्य देशो के गंजो को नाखून नहीं दिये गये हो। मैंने तुरंत इस विचार को झटक दिया क्योकि मेरे अंदर से आवाज़ आई यह अल्लाह की नीति है अमेरिका की नीति नहीं है जो हर देश के लिये अलग अलग हो। अब अगर बहुत खोजबीन के बाद वह आदमी मिल भी जाये जिसने सब से पहले यह दावा किया था कि ख़ुदा गंजो को नाखून नहीं देता तो वह आदमी अपने बयान से साफ़ साफ़ मुकर जायेगा और कहेगा – मेरा आशय यह नहीं था मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है।

— अखतर अली

अखतर अली

जन्म 14 अप्रेल 1960, रायपुर (छत्तीसगढ़) मूलतः व्यंग्यकार, विगत 40 वर्षो से निरंतर लेखन जारी। व्यंग्य, समीक्षा, आलेख एवं लघु कथाओं का निरंतर लेखन। अमृत संदेश, नव भारत, दैनिक भास्कर, नई दुनिया,रांची एक्सप्रेस, जनवाणी, हरिभूमि, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, वागर्थ, बालहंस,सुखनवर, सामानांतरनामा, कलावासुधा, इप्टा वार्ता, सूत्रधार, कार्टून वाच, दुनियाँ इन दिनों उदंती.काँम, साहित्य सुधा, साहित्यकथा, रचनाकार, अट्टहास, विभोम स्वर, सदभावना दर्पण आदि आदि पत्रिकाओं में निरंतर रचनाये प्रकाशित। आज की जनधारा में व्यंग्य स्तंभ हबीब तनवीर से रंगमंच का प्रशिक्षण। अनेको नाट्य स्पर्धाओं में सम्मेलनों, गोष्ठियों में शिरकत। लिखित प्रमुख व्यंग्य नाटक – निकले थे मांगने किस्सा कल्पनापुरका विचित्रलोक की सत्यकथा नंगी सरकार अमंचित प्रस्तुति खुल्लम खुल्ला सुकरात अजब मदारी गजब तमाशा एक अजीब दास्ताँ दर्द अनोखे प्यार के नाक। प्रमुख नाट्य रूपांतरण – ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद) किस्सा नागफनी (हरिशंकर परसाई) अकाल उत्सव (गिरीश पंकज) मौत की तलाश में (फ़िक्र तौसवी) टोपी शुक्ला (राही मासूम रज़ा) बाकी सब खैरियत है (सआदत हसन मंटो) असमंजस बाबू (सत्यजीत रे) जितने लब उतने अफसाने (राजी सेठ) एक गधे की आत्म कथा (कृष्ण चंदर) बियालिस साल आठ महीने (सआदत हसन मंटो) सात दिन तुमने क्यों कहा था कि मै खूबसूरत हूं (यशपाल) काली शलवार (एक पात्रीय) (मंटो) नाक (निकोलाई गोगोल) प्रमुख नुक्कड़ नाटक – नाटक की आड़ में, लाटरी लीला, खदान दान। सम्पर्क – अखतर अली,निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल, आमानाका, रायपुर। मो.न. 9826126781 Email – [email protected]