हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – गुरु और शिष्य की कहानी

जब भी कोई खस्ता हाल आदमी दिखे जो उजड़ा हुआ चमन सा महसूस हो तो समझ जाना ये बहुत से कामयाब चेलों का गुरु है और जब भी किसी आलीशान बंगले में और खूबसूरत कार में महंगे लिबास वाला कोई शख्स दिखे तो समझ जाना यह उसी गुरु का चेला है। गुरु और चेले की यही दास्ताँ है कि गुरु गुरु रहे और चेले जुमा हो गये।

जो सफ़ल चेला है हकीकत में वह पैदाइशी गुरु होता है। वह तो बस शिष्य होने का अभिनय करता है। किसी को अपने रास्ते से हटाने के जो बहुत से उपाय है उसमें एक यह भी है कि उसे अपना गुरु घोषित कर दो। यह समय चेलों का समय है। चेलों का भविष्य उज्ज्वल है और गुरुओं के लिये कोई संभावना नहीं है। सफ़ल व्यक्ति जब अपनी सफ़लता का श्रेय अपने गुरु को देता है तब गुरु सोच में पड़ जाता है कि मैंने तो उसे यह ज्ञान नहीं दिया था। आज हर क्षेत्र में चेलों का ही बोलबाला है गुरुओं की कहीं कोई पूछ नही है। बहुत से गुरु होने की काबलियत रखने वाले लोग अब घर से निकलने में डरने लगे है कि कही कोई पीछे से आकर अपना गुरु न बना ले।

गुरुओं के लिये कोई ठोस आर्थिक नीति नहीं है। कृषक के लोन माफ़ हो रहे हैं और गुरुओं को कोई कर्ज़ देने को तैयार नहीं। सभी किस्म की व्यवस्था जिनके हाथ में है उन्होंने गुरुओं के लिये कोई व्यवस्था नहीं करी। आज के चेले गुरु को गुरु मानते है लेकिन गुरु की एक नहीं मानते है। चेलों के चैनल है लेकिन गुरु ख़बर में नहीं है। गुरु लेने वालों की लाईन में खड़े हैं और शिष्य देने के लिये मंच पर विराजमान है मगर अनजान बने। चेलों की भव्य बर्थडे पार्टी होती है और गुरुओं की शोक सभा। जिसे कभी कोई बधाई और शुभकामनाएं देने नहीं जाता लेकिन श्रद्धांजली देने के लिये लोग उमड़ पड़े उसे गुरु कहते हैं।

आज के शागिर्द अपने बच्चो को अपने ही उस्ताद के पास ज्ञान लेने भेजते है और अपने बच्चो को समझाते है कि गुरु जी की बाते ध्यान से सुनो और अपने दिमाग में फिट कर लो क्योकि ये वो बाते है जिन्हें कभी अपनाना नहीं वरना कहीं के नही रहोगे। यह समय किसी के बताये रास्ते पर चलने का समय नही है बल्कि मनमानी करने का समय है। जो मनमानी करते हैं उन्ही के मन की मानी जाती है।

ऐसा बिलकुल भी नही माना जाये कि शिष्य अपने गुरु की चिंता नही करते है बहुत चिंता करते है। गुरु को उंचा पद देकर उनके उपर ज़िम्मेदारी का बोझ नही लादते है, उन्हें सुविधाएं प्रदान कर उनका संघर्ष खत्म नहीं करते, गुरु दक्षिणा में बड़ी राशि देकर वो गुरु की चैन की नींद नहीं छीनते। गुरु जी की जर्जर ढांचा परियोजना ही गुरु के प्रति उनकी श्रद्धा है। अब चेलों ने अपने मकान बदल लिये है और गुरुओं का पता आज भी वही है इसलिये कहा जाता है गुरु वहीँ के वहीँ रहे और चेले कहां से कहां पहुच गये। आज गुरु के सीने से भाप निकल रही है जिसे देखने वाला कोई चेला उनके पास नही है। हर गुरु अकेलापन भोगने के लिये अभिशप्त है।

कामयाब चेलों के गुरु अपने ही घर में घिर गए है। अब बच्चे बड़े हो गए है और पूछ रहे है – पापा आप गुरु क्यों हुए, काश आप भी चेले होते तो हमें ये बुरे दिन तो न देखने पड़ते। आप झोपड़ी की रात और वो जंगल की सुबह है। जब शिष्य पूर्णतया प्रशिक्षित हो जाता है तब सब से पहले वह गुरु की नाव में सुराख़ करता है। ये नये ज़माने के शिष्य है जो उस्ताद की तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखते सीधे कंधे पर उठाने वाले दिन आते है। चेला काटने वाला कीड़ा और गुरु सहने वाली पीड़ा है। शिष्य की बेवफ़ाई पर गुरु आंसू नहीं बहाते है क्योकि वह गुरु है उसे मालूम है कि उसके आंसुओं से यह सूखा जंगल हरा नहीं हो जायेगा, उसे आंसू की हकीकत मालूम है कि वह आंख से होकर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जायेगा।

— अखतर अली

अखतर अली

जन्म 14 अप्रेल 1960, रायपुर (छत्तीसगढ़) मूलतः व्यंग्यकार, विगत 40 वर्षो से निरंतर लेखन जारी। व्यंग्य, समीक्षा, आलेख एवं लघु कथाओं का निरंतर लेखन। अमृत संदेश, नव भारत, दैनिक भास्कर, नई दुनिया,रांची एक्सप्रेस, जनवाणी, हरिभूमि, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, वागर्थ, बालहंस,सुखनवर, सामानांतरनामा, कलावासुधा, इप्टा वार्ता, सूत्रधार, कार्टून वाच, दुनियाँ इन दिनों उदंती.काँम, साहित्य सुधा, साहित्यकथा, रचनाकार, अट्टहास, विभोम स्वर, सदभावना दर्पण आदि आदि पत्रिकाओं में निरंतर रचनाये प्रकाशित। आज की जनधारा में व्यंग्य स्तंभ हबीब तनवीर से रंगमंच का प्रशिक्षण। अनेको नाट्य स्पर्धाओं में सम्मेलनों, गोष्ठियों में शिरकत। लिखित प्रमुख व्यंग्य नाटक – निकले थे मांगने किस्सा कल्पनापुरका विचित्रलोक की सत्यकथा नंगी सरकार अमंचित प्रस्तुति खुल्लम खुल्ला सुकरात अजब मदारी गजब तमाशा एक अजीब दास्ताँ दर्द अनोखे प्यार के नाक। प्रमुख नाट्य रूपांतरण – ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद) किस्सा नागफनी (हरिशंकर परसाई) अकाल उत्सव (गिरीश पंकज) मौत की तलाश में (फ़िक्र तौसवी) टोपी शुक्ला (राही मासूम रज़ा) बाकी सब खैरियत है (सआदत हसन मंटो) असमंजस बाबू (सत्यजीत रे) जितने लब उतने अफसाने (राजी सेठ) एक गधे की आत्म कथा (कृष्ण चंदर) बियालिस साल आठ महीने (सआदत हसन मंटो) सात दिन तुमने क्यों कहा था कि मै खूबसूरत हूं (यशपाल) काली शलवार (एक पात्रीय) (मंटो) नाक (निकोलाई गोगोल) प्रमुख नुक्कड़ नाटक – नाटक की आड़ में, लाटरी लीला, खदान दान। सम्पर्क – अखतर अली,निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल, आमानाका, रायपुर। मो.न. 9826126781 Email – akhterspritwala@gmail.com