सकून की तलाश
ज़िन्दगी चौराहे पर है खड़ी,
मन में बातें चली है बड़ी बड़ी,
लगी है विचारों के द्वंदो की झड़ी,
फिर लगता है
ज़िन्दगी क्यूं है ऐसे मायूस पड़ी,
कुछ पल सुहाने से लगते हैं सिर्फ कुछ घड़ी,
फिर लगता है जिंदगी इधर उधर है बिखरी पड़ी ,
खट्टे मीठे एहसास है ज़िन्दगी,
ढूंढ रही है हर चौराहे पर सकून,
परंतु ये तो अपने ही हिसाब से हुए जा रही है अफलातून,
ज़िन्दगी हर चौराहे पर ढूंढ रही है सकून,
सुखद एहसास भी है ज़िन्दगी,
तो प्रश्नों की खान भी है ज़िन्दगी,
बस सकून की तलाश में है ज़िन्दगी,
सिर्फ सकून की तलाश में है ज़िन्दगी,
“जय” क्यूं सोचता है इतना ज्यादा,
इन खट्टे मीठे पलों का एहसास ही है ज़िन्दगी।
— डॉ. जय महलवाल