गीतिका/ग़ज़ल

अधूरापन भाये हमें

बना ली है जब हमने दूरी
फिर आड़े ना आए मजबूरी।

सामने ना वह आए कभी
चाहे कितना भी रहे जरूरी।

सम्पूर्णता यानि फिर ठहराव
भाये मुझको रहूं अधूरी।

ललक रहे हमेशा कायम
चाह नहीं हो जाए पूरी।

नदी सी ही प्रवाह रहे
मंजूर नहीं हो जाऊं खारी।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]